श्री गुरू ग्रंथ साहिब दर्पण । टीकाकार: प्रोफैसर साहिब सिंह । अनुवादक भुपिन्दर सिंह भाईख़ेल |
Page 1352 ੴ सति नामु करता पुरखु निरभउ निरवैरु रागु जैजावंती महला ९ ॥ रामु सिमरि रामु सिमरि इहै तेरै काजि है ॥ माइआ को संगु तिआगु प्रभ जू की सरनि लागु ॥ जगत सुख मानु मिथिआ झूठो सभ साजु है ॥१॥ रहाउ॥ पद्अर्थ: सिमरि = स्मरण किया कर। इहै = ये (स्मरण) ही। तेरै काजि = तेरे काम में (आने वाला)। को = का। संगु = साथ, मोह। लागु = पड़ा रह। मानु = मान, समझ ले। मिथिआ = नाशवान। साजु = जगत पसारा।1। रहाउ। अर्थ: हे भाई! परमात्मा (का नाम) स्मरण किया कर, परमात्मा का नाम स्मरण किया कर। यह (स्मरण) ही तेरे काम में (आने वाला) है। हे भाई! माया के मोह छोड़ दे, परमात्मा की शरण पड़ा रह। हे भाई! दुनिया के सुखों को नाशवान समझ। जगत का यह सारा पसारा (ही) साथ छोड़ जाने वाला है।1। रहाउ। सुपने जिउ धनु पछानु काहे परि करत मानु ॥ बारू की भीति जैसे बसुधा को राजु है ॥१॥ पद्अर्थ: काहे परि = किस पर? मानु = अहंकार। बारू = रेत। भीति = दीवार। बसुधा = धरती। को = का।1। अर्थ: हे भाई! इस धन को सपने (में मिले पदार्थों) की तरह समझ (जाग खुलते ही वह पदार्थ अलोप हो जाते हैं। बता,) तू किस पर अहंकार करता है? (सारी) धरती का राज (भी) रेत की दीवार जैसा ही है।1। नानकु जनु कहतु बात बिनसि जैहै तेरो गातु ॥ छिनु छिनु करि गइओ कालु तैसे जातु आजु है ॥२॥१॥ पद्अर्थ: नानक कहत = नानक कहता है। बात = बात। बिनसि जै है = नाश हो जाएगा। गातु = शरीर। कालु = कल (का दिन)। आजु = आज का दिन।2। अर्थ: हे भाई! दास नानक (तुझे यह) बात बताता है कि तेरा (तो अपना यह मिथा हुआ) शरीर (भी) नाश हो जाएगा। (देख, जैसे तेरी उम्र का) कल (का दिन) छिन-छिन करके बीत गया है, वैसे ही आज (का दिन भी) गुजरता जा रहा है।2।1। जैजावंती महला ९ ॥ रामु भजु रामु भजु जनमु सिरातु है ॥ कहउ कहा बार बार समझत नह किउ गवार ॥ बिनसत नह लगै बार ओरे सम गातु है ॥१॥ रहाउ॥ पद्अर्थ: भजु = भजन कर, जपा कर। सिरातु है = बीतता जा रहा है। कहउ = मैं कहूँ। कहा = कहूँ? क्या? बार बार = बार-बार। गवार = हे मूर्ख! बिनसत = नाश होते हुए। बार = ढील, देरी। ओरा = ओला, गड़ा। ओरे सम = ओले के समान, गड़े जैसा, गड़े के बराबर। सम = बराबर, समान। गातु = शरीर।1। रहाउ। अर्थ: हे भाई! परमात्मा का भजन किया कर, परमात्मा का भजन करा कर। मनुष्य जनम गुजरता जा रहा है। हे मूर्ख! मैं (तुझे) बार-बार क्या कहूँ? तू क्यों नहीं समझता? (तेरा यह) शरीर (होने में) ओले जैसा ही है (इसके) नाश होने (पिघलने) में देर नहीं लगती।1। रहाउ। सगल भरम डारि देहि गोबिंद को नामु लेहि ॥ अंति बार संगि तेरै इहै एकु जातु है ॥१॥ पद्अर्थ: भरम = भटकना। डारि देहि = छोड़ दे। को = का। लेहि = जपा कर। अंति बार = आखिरी समय। संगि तेरै = तेरे साथ। इहै एक = सिर्फ यह ही।1। अर्थ: हे भाई! सारी भटकनें छोड़ दे, परमात्मा का नाम जपा कर। आखिरी समय में तेरे साथ सिर्फ यह नाम ही जाने वाला है।1। बिखिआ बिखु जिउ बिसारि प्रभ कौ जसु हीए धारि ॥ नानक जन कहि पुकारि अउसरु बिहातु है ॥२॥२॥ पद्अर्थ: बिखिआ = माया। बिखु = जहर। बिसारि = भुला दे। जसु = यश, महिमा। हीए = हृदय में। धारि = बसाए रख। कहि = कहे, कहता है। पुकारि = पुकार के। अउसरु = मौका, समय।2। अर्थ: हे भाई! माया (का मोह अपने अंदर से) जहर की तरह भुला दे। परमात्मा की महिमा (अपने) हृदय में बसाए रख। दास नानक (तुझे) पुकार-पुकार के कह रहा है, (मनुष्य-जिंदगी का समय) बीतता जा रहा है।2।2 जैजावंती महला ९ ॥ रे मन कउन गति होइ है तेरी ॥ इह जग महि राम नामु सो तउ नही सुनिओ कानि ॥ बिखिअन सिउ अति लुभानि मति नाहिन फेरी ॥१॥ रहाउ॥ पद्अर्थ: गति = हालत, दशा। होइ है = होगी। महि = में। तउ = तो। कानि = कान से, ध्यान दे के। बिखिअन सिउ = विषियों से। अति = बहुत। लुभानि = ग्रसा हुआ। फेरी = पलटी।1। रहाउ। अर्थ: हे मन! (तू कभी सोचता नहीं कि) तेरी क्या दशा होगी। इस जगत में (तेरा असल साथी) परमात्मा का नाम (ही) है, वह (नाम) तूने कभी ध्यान से नहीं सुना। तू विषौ- (विकारों) में बहुत (ज्यादा) फसा रहता है, तू (अपनी) तवज्जो (इनकी ओर से कभी) पलटता नही।1। रहाउ। मानस को जनमु लीनु सिमरनु नह निमख कीनु ॥ दारा सुख भइओ दीनु पगहु परी बेरी ॥१॥ पद्अर्थ: को = का। लीनु = लिया, हासिल किया। निमख = (निमेष) आँख झपकने जितना समय। कीनु = किया। दारा = स्त्री। दीनु = आतुर, अधीन। पगहु = पैरों में। परी = पड़ी हुई है। बेरी = बेड़ी।1। अर्थ: हे भाई! तूने मनुष्य का जन्म (तो) हासिल कर लिया, पर कभी रक्ती भर समय के लिए भी परमात्मा का स्मरण नहीं किया। तू सदा स्त्री के सुखों के अधीन ही हुआ रहता है। तेरे पैरों में (स्त्री के मोह की) बेड़ी पड़ी रहती है।1। नानक जन कहि पुकारि सुपनै जिउ जग पसारु ॥ सिमरत नह किउ मुरारि माइआ जा की चेरी ॥२॥३॥ पद्अर्थ: कहि = कहे, कहता है। पुकारि = पुकार के। जग पसारु = जगत का खिलारा। मुरारि = (मुर+अरि) परमात्मा। जा की = जिस (परमात्मा) की। चेरी = दासी।2। अर्थ: हे भाई! दास नानक (तुझे) पुकार के कहता है कि यह जगत का पसारा सपने जैसा ही है। यह माया जिसकी दासी है तू उस परमात्मा का स्मरण क्यों नहीं करता।2।3। जैजावंती महला ९ ॥ बीत जैहै बीत जैहै जनमु अकाजु रे ॥ निसि दिनु सुनि कै पुरान समझत नह रे अजान ॥ कालु तउ पहूचिओ आनि कहा जैहै भाजि रे ॥१॥ रहाउ॥ पद्अर्थ: जैहे = जाएगा। बीत जैहै = गुजर जाएगा। अकाजु = असफल, जीवन उद्देश्य प्राप्त किए बिना। रे = हे भाई! निसि = रात। रे अजान = हे बेसमझ! , हे मूर्ख! कालु = मौत का समय। आनि = आ के। भाजि = भाग के। कहा = कहाँ?।1। रहाउ। अर्थ: हे भाई! (परमात्मा की भक्ति के बिना) मानव जीवन (का समय) जनम-उद्देश्य हासिल किए बिना ही गुजरता जा रहा है, लांघता जा रहा है। हे मूर्ख! रात-दिन पुराण (आदिक पुस्तकों की कहानियाँ) सुन के (भी) तू नहीं समझता (कि यहाँ सदा बैठे नहीं रहना)। मौत (का समय) तो (नज़दीक) आ पहुँचा है (बता, तू इस ओर से) भाग के कहाँ चला जाएगा।1। रहाउ। |
Sri Guru Granth Darpan, by Professor Sahib Singh |