श्री गुरू ग्रंथ साहिब दर्पण । टीकाकार: प्रोफैसर साहिब सिंह । अनुवादक भुपिन्दर सिंह भाईख़ेल

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तिलंग मः १ ॥ इआनड़ीए मानड़ा काइ करेहि ॥ आपनड़ै घरि हरि रंगो की न माणेहि ॥ सहु नेड़ै धन कमलीए बाहरु किआ ढूढेहि ॥ भै कीआ देहि सलाईआ नैणी भाव का करि सीगारो ॥ ता सोहागणि जाणीऐ लागी जा सहु धरे पिआरो ॥१॥ इआणी बाली किआ करे जा धन कंत न भावै ॥ करण पलाह करे बहुतेरे सा धन महलु न पावै ॥ विणु करमा किछु पाईऐ नाही जे बहुतेरा धावै ॥ लब लोभ अहंकार की माती माइआ माहि समाणी ॥ इनी बाती सहु पाईऐ नाही भई कामणि इआणी ॥२॥ जाइ पुछहु सोहागणी वाहै किनी बाती सहु पाईऐ ॥ जो किछु करे सो भला करि मानीऐ हिकमति हुकमु चुकाईऐ ॥ जा कै प्रेमि पदारथु पाईऐ तउ चरणी चितु लाईऐ ॥ सहु कहै सो कीजै तनु मनो दीजै ऐसा परमलु लाईऐ ॥ एव कहहि सोहागणी भैणे इनी बाती सहु पाईऐ ॥३॥ आपु गवाईऐ ता सहु पाईऐ अउरु कैसी चतुराई ॥ सहु नदरि करि देखै सो दिनु लेखै कामणि नउ निधि पाई ॥ आपणे कंत पिआरी सा सोहागणि नानक सा सभराई ॥ ऐसै रंगि राती सहज की माती अहिनिसि भाइ समाणी ॥ सुंदरि साइ सरूप बिचखणि कहीऐ सा सिआणी ॥४॥२॥४॥ {पन्ना 722}

पद्अर्थ: इआनी = अंजान लड़की। इआनड़ी = बहुत अंजान लड़की। इआनड़ीऐ = हे बहुत ही अंजान जिंदे! हे नासमझ जीवात्मा! मानड़ा = कोझा गुमान। काइ = क्यों? करेहि = तू करती है। घरि = घर में, हृदय में। रंगो = रंगु, आनंद। की = क्यों? धन कंमलीऐ = हे भोली जीव-सि्त्रए! बाहुर = बाहरी जगत। भाव का = प्रेम का। सलाई = सुरमचू जिससे सुर्मा डाला जाता है। लागी = लगी हुई, जुड़ी हुई।1।

(नोट: ‘बाहरि’ और ‘बाहरु’ का फर्क याद रखने योग्य है)।

किआ करे = क्या कर सकती है? कंत न भावै = कंत का ठीक ना लगे। करण पलाह = (करुणा प्रलाप) तरले, कीरने। साधन = जीव स्त्री। करमा = करम, मेहर, बख्शिश। धावै = दौड़ भाग करे। माती = मस्त। इनी बाती = इन बातों से। कामणि = स्त्री।2।

वाहै = उनको। हिकमति = चालाकी। हुकमु = जबरदस्ती। जा के प्रेमि = जिसके प्रेम से। तउ = उस की। मनो = मन। परमलु = सुगंधि। ऐव = इस तरह। कहहि = कहती हैं।3।

आपु = स्वै भाव। अउरु = कोई और उद्यम। कैसी चतुराई = व्यर्थ की चालाकी। लेखै = लेखे में, सफल। नउनिधि = नौ खजाने। सभराई = भाईयों वाली, सारे परिवार में आदर वाली। रंगि = रंग में। राती = रंगी हुई। अहि = दिन। निसि = रात। भाइ = भाउ में, प्रेम में। सुंदरि = सुंदरी। साई = वही स्त्री। सरूप = रूप वाली। बिचखणि = (विचक्षण, विलक्षण) तीक्ष्ण बुद्धि। सा = वह स्त्री।4।

अर्थ: हे अति अंजान जिंदे! तू इतना कोझा गुमान क्यों करती है? परमात्मा तेरे अपने ही हृदय-घर में है, तू उस (के मिलाप) का आनंद क्यों नहीं लेती? हे भोली जीव-सि्त्री! पति-प्रभू (तेरे अंदर ही तेरे) नजदीक बस रहा है, तू (जंगल आदिक) बाहरी संसार क्यों तलाशती फिरती है? (अगर तूने उसका दीदार करना चाहती है, तो अपने ज्ञान की) आँखों में (प्रभू के) डर-अदब (के अंजन) की सलाईयां डाल, प्रभू के प्यार का हार-श्रृंगार कर।

जीव-स्त्री तब ही सोहाग-भाग वाली और प्रभू-चरणों में जुड़ी हुई समझी जाती है, जब प्रभू-पति उससे प्यार करे।1।

(पर) नासमझ जीव-स्त्री भी क्या कर सकती है यदि वह जीव-स्त्री प्रभू-पति को अच्छी ना लगे? ऐसी जीव-स्त्री भले कितने ही करुणा प्रलाप करती फिरे, वह प्रभू-पति का महल-गृह नहीं पा सकती। (दरअसल बात ये है कि) जीव-स्त्री भले ही कितनी ही दौड़-भाग करती रहे, प्रभू की मेहर के बिना कुछ भी हासिल नहीं होता।

यदि जीव-स्त्री जीभ के चस्के लालच और अहंकार (आदि) में ही मस्त रहे, और सदा माया (के मोह) में डूबी रहे, तो इन बातों से पति-प्रभू नहीं मिलता। वह जीव-स्त्री बेसमझ ही रही (जो विकारों में मस्त रहके और फिर भी समझे कि वह पति-प्रभू को प्रसन्न कर सकती है)।2।

(जिनको पति-प्रभू मिल गया है, बेशक) उन सोहाग-भाग वालियों को जा के पूछ के देखो कि किन बातों से पति-प्रभू मिलता है, (वे यही उक्तर देती हैं कि) चालाकी और जबरदस्ती त्याग दो, जो कुछ प्रभू करता है उसको अच्छा समझ के (सिर माथे पर) मानो, जिस प्रभू के प्रेम के सदका नाम-वस्तु मिलती है उसके चरणों में मन जोड़ो, पति-प्रभू जो हुकम करता है वह करो, अपना शरीर और मन उसके हवाले करो, बस! ये सुगंधि (जिंद के लिए) बरतो। सोहाग-भाग वाली सही कहतीं हैं कि हे बहन! इन बातों से ही पति-प्रभू मिलता है।3।

पति-प्रभू तब ही मिलता है जब स्वै भाव दूर करें। इसके बिना किया गया और कोई उद्यम व्यर्थ है, चालाकी है। (जिंदगी का) वह दिन सफल जानो जब पति-प्रभू मेहर की निगाह से देखे, (जिस) जीव-स्त्री (की ओर मेहर की) निगाह करता है वह मानो नौ खजाने पा लेती है।

हे नानक! जो जीव-स्त्री पति-प्रभू को प्यारी है वह सोहाग-भाग वाली है वह (जगत-) परिवार में आदर पाती है। जो प्रभू के प्यार-रंग में रंगी रहती है, जो अडोलता में मस्त रहती है, जो दिन-रात प्रभू के प्रेम-रंग में मगन रहती है, वही सोहानी है सुंदर रूप वाली है तीक्ष्ण बुद्धि वाली है और समझदार कही जाती है।4।2।4।

तिलंग महला १ ॥ जैसी मै आवै खसम की बाणी तैसड़ा करी गिआनु वे लालो ॥ पाप की जंञ लै काबलहु धाइआ जोरी मंगै दानु वे लालो ॥ सरमु धरमु दुइ छपि खलोए कूड़ु फिरै परधानु वे लालो ॥ काजीआ बामणा की गल थकी अगदु पड़ै सैतानु वे लालो ॥ मुसलमानीआ पड़हि कतेबा कसट महि करहि खुदाइ वे लालो ॥ जाति सनाती होरि हिदवाणीआ एहि भी लेखै लाइ वे लालो ॥ खून के सोहिले गावीअहि नानक रतु का कुंगू पाइ वे लालो ॥१॥ साहिब के गुण नानकु गावै मास पुरी विचि आखु मसोला ॥ जिनि उपाई रंगि रवाई बैठा वेखै वखि इकेला ॥ सचा सो साहिबु सचु तपावसु सचड़ा निआउ करेगु मसोला ॥ काइआ कपड़ु टुकु टुकु होसी हिदुसतानु समालसी बोला ॥ आवनि अठतरै जानि सतानवै होरु भी उठसी मरद का चेला ॥ सच की बाणी नानकु आखै सचु सुणाइसी सच की बेला ॥२॥३॥५॥ {पन्ना 722-723}

पद्अर्थ: मै = मुझे। बाणी = प्रेरणा। करी = मैं करता हूँ। गिआनु = जान पहचान, वाकफियत। करी गिआनु = मैं हाल बताता हूँ। वे = हे! काबलहु = काबुल से। धाइआ = हमला करके आया। जोरी = जोर जबरदस्ती।

नोट: (दानु ) विवाह के समय लड़की वाले के घर लड़के वाले बारात के रूप में आते हैं। खुशी के गीत गाए जाते हैं। हिन्दुओं का विवाह ब्राहमण और मुसलमानों का काजी पढ़ता है। हिन्दू कन्या-दान करते हैं, दान के तौर पर कन्या भेट करते हैं। उस सोहाने समय में बारातियों पर केसर छिड़का जाता है। विवाह का ये दृष्टांत दे के गुरू नानक देव जी इस शबद के माध्यम से बताते हैं कि बाबर ने काबुल से फौज ले कर चढ़ाई की, जैसे, पाप-जुल्म की बारात ले के हिन्द की हकूमत-रूपी दुल्हन को ब्याहने आया हो। बाबर के फौजियों ने सैदपुर, ऐमनाबाद, की सि्त्रयों की बहुत बेइज्जती की, ये जैसे, काजी और ब्राहमण की जगह शैतान विवाह पढ़ा रहा था। कत्लेआम से शहर की गलियों-बाजारों में लहू ही लहू था। ये मानो, उस खूनी विवाह में केसर छिड़का जा रहा था। विवाहों के खुशी के सोहिलों की जगह खून के सोहिले गाए जा रहे थे, हर तरफ मौत के ताण्डव के कारण विरलाप ही विरलाप पड़ रहे थे ।

सरमु = शर्म, हया। परधानु = चौधरी। थकी = रह गई, खत्म हो गई। अगदु = निकाह, विवाह। करहि खुदाइ = खुदा खुदा करती हैं, खुदा के आगे पुकार करती हैं। सनाती = नीच जाति। ऐहि भी = ये भी सारी। लेखै लाइ = उस जुल्म के लेखे में ही गिन। खून के सोहिले = कीरने, विरलाप, वैण। रतु = रक्त, लहू। कुंगू = केसर।1।

अर्थ: हे (भाई) लालो! मुझे जैसी प्रभू-पति से प्रेरणा आई है उसी अनुसार मैं तुझे (उस दुघर्टना के) बारे में बता देता हूँ (जो इस शहर सैदपुर में घटित हुई है)। (बाबर) काबुल से (फौज, जो मानो) पाप-जुल्म की बारात (है) इकट्ठी करके आ चढ़ा है, और जोर-जबरदस्ती से हिन्द की हकूमत रूपी कन्या का दान माँग रहा है। (सैदपुर में से) हया और शर्म दोनों अलोप हो चुके हैं, झूठ ही झूठ चौधरी बना फिरता है। (बाबर के सिपाहियों द्वारा सैदपुर की सि्त्रयों पर इतने अत्याचार हो रहे हैं कि, जैसे) शैतान (इस शहर में) विवाह पढ़ा रहा है और काज़ियों व ब्राहमणों की (शिष्टाचार वाली) मर्यादा समाप्त हो चुकी है। मुसलमान औरतें (भी इस जुल्म का शिकार हो रही हैं जो) इस बिपता में (अपनी धर्म-पुस्तक) कुरान (की आयतें) पढ़ रही है। और ख़ुदा के आगे अरदास कर रही हैं। उच्च जातियों की, नीच जातियों की और भी सारी हिन्दू सि्त्रयाँ - इन सभी पर अत्याचार हो रहे हैं।

हे नानक! (इस ख़ूनी विवाह में सैदपुर नगर के अंदर चारों तरफ) विरलाप हो रहे हैं और लहू का केसर छिड़का जा रहा है।1।

पद्अर्थ: मासपुरी = वह नगर जहाँ हर तरफ मास ही मास बिखरा पड़ा है, जहाँ लाशों के ढेर लगे पड़े हैं, लाशों भरा शहर। आखु = (हे भाई लालो! तू भी) कह। मसोला = मसला, असूल की बात, अटल नियम। जिनि = जिस (मालिक प्रभू) ने। रंगि = रंग में, माया के मोह में। रवाई = पचाई, प्रवृत की। वखि = अलग हो के, निर्लिप रह के। इकेला = अकेला रह के। टुकु टुकु = टुकड़े टुकड़े। होसी = होगा, हो रहा है। समालसी = याद रखेगा। बोला = बात, दुर्घटना। आवनि = आते हैं, आए हैं। अठतरै = अठक्तर में, संवत् 1578 में (सन् 1521में।

नोट: गुरू नानक साहिब की तीसरी ‘उदासी’ के समय सन् 1518 में मक्के गए थे। वहाँ से ईरान देश व अफगानिस्तान देश के हाजियों से मिल के बग़दाद से काबुल के रास्ते वापस आ के ऐमनाबाद (सैदपुर) सन् 1521 में उसी वक्त पहुँचे थे, जब बाबर शहर स्यालकोट का कत्लेआम करके यहाँ पहुँचा था)।

जानि = जाते हैं, जाएंगे। सतानवै = संवत् 1597 में (सन् 1540 में)। उठसी = उठेगा, ताकत पकड़ेगा, सक्ता में आएगा। मरद का चेला = शूरवीर।

(नोट: शेरशाह सूरी ने बाबर के पुत्र हिमायूँ को हिन्दुस्तान से मार भगाया और स्वयं सन् 1540 में यहाँ का शासन सम्भाला था)।

सच की बाणी = सदा कायम रहने वाले प्रभू की सिफतसालाह की बाणी। आखै = कहता है, उचारता है। सुणाइसी = सुनाता रहेगा, उचारता रहेगा, कहता रहेगा। बेला = समय, मानस जन्म का समय। सच की बेला = सिमरन, सिफत सालाह का ही यह समय है।2।

अर्थ: (सैदपुर के कत्लेआम की ये दुर्घटना बहुत ही भयानक है, पर ये भी ठीक है कि जगत में ये सब कुछ मालिक-प्रभू की रजा में हो रहा है, इस वास्ते) लाशों भरे शहर में बैठ के भी नानक उस मालिक-प्रभू के गुण गाता है, (हे भाई लालो! तू भी इस) अटॅल नियम को उचार (याद रख कि) जिस मालिक प्रभू ने (ये सृष्टि) पैदा की है, उसी ने ही इसे माया के मोह में प्रवृति किया हुआ है, वह स्वयं ही निर्लिप रहके (उन दुर्घटनाओं को) देख रहा है (जो माया के मोह के कारण घटित होती हैं)।

वह मालिक-प्रभू अॅटल नियमों वाला है, उसका न्याय (अब तक) अॅटल है, वह (भविष्य में भी) अॅटल नियम को जारी रखेगा वही न्याय करेगा जो अटॅल है। (उस अॅटल नियम के मुताबिक ही इस वक्त सैदपुर में हर तरफ़) मानव-शरीर- रूपी कपड़े टुकड़े-टुकड़े हो रहे हैं। ये एक ऐसी भयानक घटना हुई है जिसको हिन्दुस्तान भुला नहीं सकेगा।

(पर, हे भाई लालो! जब तक मनुष्य माया के मोह में प्रवृति हैं, ऐसे कत्लेआम होते रहेंगे, मुग़ल आज) संवत् अठक्तर में आए हैं, ये संवत् सक्तानबे में चले जाएंगे, कोई और सूरमा भी उठ खड़ा होगा। (जीव माया के रंग में मस्त हो के उम्र व्यर्थ गवा रहे हैं) नानक तो (इस वक्त भी) सदा कायम रहने वाले प्रभू की सिफत सालाह करता है, (सारी उम्र ही) ये सिफत सालाह करता रहेगा, क्योंकि मनुष्य को जीवन का ये समय ईश्वर की सिफत सालाह करने के लिए मिला है।2।3।5।

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Sri Guru Granth Darpan, by Professor Sahib Singh