श्री गुरू ग्रंथ साहिब दर्पण । टीकाकार: प्रोफैसर साहिब सिंह । अनुवादक भुपिन्दर सिंह भाईख़ेल

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सारग महला ५ ॥ अब मोरो नाचनो रहो ॥ लालु रगीला सहजे पाइओ सतिगुर बचनि लहो ॥१॥ रहाउ ॥ कुआर कंनिआ जैसे संगि सहेरी प्रिअ बचन उपहास कहो ॥ जउ सुरिजनु ग्रिह भीतरि आइओ तब मुखु काजि लजो ॥१॥ जिउ कनिको कोठारी चड़िओ कबरो होत फिरो ॥ जब ते सुध भए है बारहि तब ते थान थिरो ॥२॥ जउ दिनु रैनि तऊ लउ बजिओ मूरत घरी पलो ॥ बजावनहारो ऊठि सिधारिओ तब फिरि बाजु न भइओ ॥३॥ जैसे कु्मभ उदक पूरि आनिओ तब ओुहु भिंन द्रिसटो ॥ कहु नानक कु्मभु जलै महि डारिओ अ्मभै अ्मभ मिलो ॥४॥३॥ {पन्ना 1203}

पद्अर्थ: मोरो = मेरा। नाचनो = माया की खातिर भटकना, माया के हाथों में नाचना। रहो = समाप्त हो गया। सहजे = आत्मिक अडोलता में। बचनि = बचन से। लहो = मिल गया है।1। रहाउ।

कुआर कंनिआ = क्वारी लड़की। संगी सहेरी = सहेलियों के साथ। उपहास = हसीं से, हस हस के। प्रिअ बचन कहे = अपने प्रीतम की बातें करती है। सुरिजनु = पति। मुखु = मुँह। काजि = ढक लेती है। लजो = लाज से।1।

कनिको = सोना। कोठारी चढ़िओ = कुठाली में पड़ता है। कबरो = कमला। जब ते = जब से। बारहि = बारह तरह का। तब ते = तब से। थान थिरो = टिक जाता है, दोबारा कुठाली में नहीं पड़ता।2।

जउ दिनु = जिस दिन तक, जब तक। रैनि = (जिंदगी की) रात। तऊ लउ = उतने समय तक ही। मूरत = महूरत। बजावनहारो = बजाने वाला जीव। बाजु न भइओ = (घ्ड़ियाल) नहीं बजता।3।

कुंभ = घड़ा। उदकि = पानी से। पूरि = भर के। आनिओ = ले आए। ओुहु = वह (पानी) (अक्षर 'अ' के साथ दो मात्राएं 'ु' और 'ो' हैं। असल शब्द है 'अुहु' व उहु, यहां 'ओहु' पढ़ना है)। भिंन = अलग। द्रिसटे = दिखता है। जलै महि = पानी में ही। अंभै = पानी को। अंभ = पानी।4।

अर्थ: हे भाई! गुरू के वचन के द्वारा आत्मिक अडोलता में टिक के मैंने सोहाना लाल प्रभू ढूँढ लिया है प्राप्त कर लिया है। अब मेरी भटकना समाप्त हो गई है।1। रहाउ।

जैसे कोई क्वारी कन्या सहेलियों के साथ अपने (मंगेतर) प्यारे की बातें हँस-हँस के करती है, पर जब (उसका) पति घर में आता है तब (वह लड़की) लज्जा से अपना मुँह ढक लेती है।1।

जैसे कुठाली में पड़ा हुआ सोना (सेक से) कमला हुआ फिरता है, पर जब वह बारह वंनी का शुद्ध हो जाता है, तब वह (सेक में तड़फने से) अडोल हो जाता है।2।

जब तक (मनुष्य की जिंदगी की) रात कायम रहती है तब तक (उम्र के बीतते जाने की खबर देने के लिए घड़ियाल से) महूरत घड़ियाँ पल बजते रहते हैं। पर जब इनको बजाने वाला (दुनिया से) उठ चलता है, तब (उन घड़ियों पलों का) बजना समाप्त हो जाता है।3।

जैसे जब कोई घड़ा पानी से भर के लाया जाए, तब (घड़े वाला) वह (पानी कूआँ आदि के अन्य पानियों से) अलग दिखता है। हे नानक! कह- जब वह (भरा हुआ) घड़ा पानी में डाल देते हैं तब (घड़े का) पानी अन्य पानी में मिल जाता है।4।3।

सारग महला ५ ॥ अब पूछे किआ कहा ॥ लैनो नामु अम्रित रसु नीको बावर बिखु सिउ गहि रहा ॥१॥ रहाउ ॥ दुलभ जनमु चिरंकाल पाइओ जातउ कउडी बदलहा ॥ काथूरी को गाहकु आइओ लादिओ कालर बिरख जिवहा ॥१॥ आइओ लाभु लाभन कै ताई मोहनि ठागउरी सिउ उलझि पहा ॥ काच बादरै लालु खोई है फिरि इहु अउसरु कदि लहा ॥२॥ सगल पराध एकु गुणु नाही ठाकुरु छोडह दासि भजहा ॥ आई मसटि जड़वत की निआई जिउ तसकरु दरि सांन्हिहा ॥३॥ आन उपाउ न कोऊ सूझै हरि दासा सरणी परि रहा ॥ कहु नानक तब ही मन छुटीऐ जउ सगले अउगन मेटि धरहा ॥४॥४॥

पद्अर्थ: पूछे = अगर (तुझे) पूछा जाय। किआ कहा = क्या बताएगा? लैनो = लेना था। अंम्रित = आत्मिक जीवन देने वाला। नीको = सुंदर। बावर = हे कमले? बिखु = आत्मिक मौत लाने वाली माया का मोह जहर। गहि रहा = चिपक रहा है।1। रहाउ।

दुलभ = बड़ी मुश्किल से मिलने वाला। चिरंकाल = चिरों के बाद। जातउ = जा रहा हैं बदलहा = बदले में। काथूरी = कस्तूरी। को = का। लादिओ = तू लाद रहा है, तूने खरीद लिया है। बिरख जिवहा = जिवांह के पौधे।1।

लाभन कै ताई = ढूँढने के लिए। मोहनि = मन को मोहने वाली। ठागउरी = ठॅग बूटी। उलझि पहा = मन जोड़ बैठा है। काच = काँच। बादरै = बदले में। खोई है = गवा रहा है। अउसरु = समय। कदि = कब? लहा = पाएगा।2।

पराध = अपराध, खुनामीआ। छोडह = हम जीव छोड़ देते हैं। दासि = दासी, माया। भजहा = भज, हम भजते हैं। मसटि = चॅुप, मूर्छा सा। जड़वत की निआई = जड़ (बेजान) पदार्थों की तरह। तसकरु = चोर। दरि = दर पर, दरवाजे पर। सांनि्हा = सेंध।3।

उपाउ = उपाय, इलाज। परि रहा = मैं पड़ा रहता हूँ। मन = हे मन! छूटीअै = माया के पँजे से बच सकते हैं। जउ = जब। मेटि धरहा = हम मिटा दें।4।

अर्थ: हे कमले! अब अगर तुझे पूछा जाए तो क्या बताएगा? (तूने यहाँ जगत में आ के) आत्मिक जीवन देने वाला परमात्मा का सुंदर नाम-रस लेना था, पर तू तो आत्मिक मौत लाने वाली माया-जहर के साथ ही चिपक रहा है।1। रहाउ।

हे झल्ले! बड़े चिरों के बाद (तुझे) दुर्लभ (मनुष्य का) जनम मिला था, पर ये तो कौड़ी के बदले जा रहा है। तू (यहाँ पर) कस्तूरी का गाहक बनने के लिए आया था, पर तूने यहाँ से कलॅर लाद लिया है, जिवांहां के बूटे लाद लिए हैं।1।

हे कमले! (तू जगत में आत्मिक जीवन का) लाभ कमाने के लिए आया था, पर तू तो मन को मोहने वाली माया ठॅग-बूटी के साथ ही अपना मन जोड़ बैठा है, तू काँच के बदले लाल गवा रहा है। हे कमले! ये मानस जन्म वाला समय फिर कब ढूँढेगा?।2।

हे भाई! हम जीवों में सारी कमियाँ ही हैं गुण एक भी नहीं। हम मालिक-प्रभू को छोड़ देते हैं और उसकी दासी की ही सेवा करते रहते हैं। जैसे कोई चोर सेंध के दरवाजे पर (पकड़ा जा के मार खा-खा के बेहोश हो जाता है, वैसे ही नाम-जपने की ओर से हमें) जड़-पदार्थों की तरह मूर्छा ही आई रहती है।3।

हे भाई! (इस मोहनी माया के पँजे में से निकलने के लिए मुझे तो) कोई और ढंग नहीं सूझता, मैं तो परमात्मा के दासों की शरण पड़ा रहता हूँ। हे नानक! कह- हे मन! माया के मोह में से तब ही बचा जा सकता है जब (प्रभू के सेवकों की शरण पड़ कर अपने अंदर से) हम सारे अवगुण मिटा दें।4।4।

सारग महला ५ ॥ माई धीरि रही प्रिअ बहुतु बिरागिओ ॥ अनिक भांति आनूप रंग रे तिन्ह सिउ रुचै न लागिओ ॥१॥ रहाउ ॥ निसि बासुर प्रिअ प्रिअ मुखि टेरउ नींद पलक नही जागिओ ॥ हार कजर बसत्र अनिक सीगार रे बिनु पिर सभै बिखु लागिओ ॥१॥ पूछउ पूछउ दीन भांति करि कोऊ कहै प्रिअ देसांगिओ ॥ हींओु देंउ सभु मनु तनु अरपउ सीसु चरण परि राखिओ ॥२॥ चरण बंदना अमोल दासरो देंउ साधसंगति अरदागिओ ॥ करहु क्रिपा मोहि प्रभू मिलावहु निमख दरसु पेखागिओ ॥३॥ द्रिसटि भई तब भीतरि आइओ मेरा मनु अनदिनु सीतलागिओ ॥ कहु नानक रसि मंगल गाए सबदु अनाहदु बाजिओ ॥४॥५॥ {पन्ना 1203-1204}

पद्अर्थ: माई = हे माँ! धीरि = धैर्य, सहने की ताकत। रही = रह गई है, समाप्त हो गई है। प्रिअ गिरागिओ = प्यारे के वैराग, प्यारे के विछोड़े का दर्द। अनिक भांति = अनेकों तरीकों से। आनूप = सुंदर। रे = हे भाई! (पुलिंग)। रुचै = प्यार, खींच।1। रहाउ।

निसि = रात। बासुर = दिन। प्रिअ = हे प्यारे! मुखि = मुँुह से। टेरउ = मैं उचारती हूँ, मैं पुकारती हूँ। कजर = काजल। बसत्र = कपड़े। सीगार = श्रंृगार, गहने। रे = हे भाई! बिखु = आत्मिक मौत लाने वाला जहर।1।

पूछउ = मैं पूछती हूँ। दीन = निमाणा। दीन भांति करि = निमाणों की तरह। भांति = तरीका। प्रिअ देसांगिउ = प्यारे का देश। हीओुं = हीओ, हृदय (अक्षर 'अ' के साथ दो मात्राएं 'ु' और 'ो' हैं। असल शब्द है 'हीओु' व हिउ, यहां 'हिओ' पढ़ना है)। देंउ = मैं देती हॅँ, मैं देने को तैयार हूँ। अरपउ = मैं भेटा करती हूँ। राखिओ = राखि, रख के।2।

बंदना = नमसकार। अमोल = मूल्य के बिना, अनमोल। दासरे = निमाणा सा दास (पुलिंग)। अरदागिओ = अरदास। देंउ अरदागिओ = मैं अरदास भेट करता हूँ। मोहि = मुझे। निमख = निमेष, आँख झपकने जितना समय। पेखागिओ = मैं देखूँ।3।

द्रिसटि = (मेहर की) निगाह। भीतरि = मेरे हृदय में। अनदिनु = हर रोज, हर वक्त। सीतलागिओ = शीतल, शांत, ठंडा। नानक = हे नाकक! रसि = रस से, स्वाद से। मंगल = खुशी के गीत, सिफत सालाह के गीत। अनाहद = (अनआहत) बिना बजाए, एक रस, हर वक्त। सबदु बाजिओ = गुरू का शबद बज रहा है, शबदअपना पूरा प्रभाव डाल रहा है।4।

अर्थ: हे (मेरी) माँ! (मेरे अंदर) प्यारे से विछोड़े का दर्द बहुत तेज़ हो गया है इसे सहने की ताकत नहीं रह गई। हे भाई! (दुनिया के) अनेकों किस्मों के सुंदर-सुंदर रंग-तमाशे हैं, पर मेरे अंदर इनके लिए कोई आकर्ष नहीं रहा।1। रहाउ।

हे (वीर)! रात-दिन मैं (अपने) मुँह से 'हे प्यारे! हे प्यारे! बोलती रहती हूँ, मुझे एक पल भी नींद नहीं आती, सदा जाग के (समय गुजार रही हूँ)। हे (वीर)! हार, काजल, कपड़े, अनेकों गहने- ये सारे प्रभू-पति के मिलाप के बिना मुझे आत्मिक मौत लाने वाली जहर दिख रहे हैं।1।

(हे माँ!) निमाणों की तरह मैं बार-बार पूछती फिरती हूँ, भला यदि कोई मुझे प्यारे का देश बता दे। (प्यारे का देश बताने वाले के) चरणों पर (अपना) सिर रख के मैंने अपना हृदय, अपना मन अपना तन सब कुछ भेटा करने को तैयाद हूँ।2।

हे भाई! मैं साध-संगति के चरणों में नमस्कार करता हूँ, मैं साध-संगति का बगैर किसी मूल्य के ही एक निमाणा सा दास हूँ, मैं साध-संगति के आगे अरदास करता हूँ- (मेरे पर) मेहर करो, मुझे परमात्मा मिला दो, मैं (उसका) आँख झपकने जितने समय के लिए ही दर्शन कर लूँ।3।

हे भाई! (जब परमात्मा की मेहर की) निगाह (मेरे ऊपर) हुई, तब वह मेरे हृदय में आ बसा। अब मेरा मन हर वक्त शीतल रहता है। हे नानक! कह- अब मैं उसकी सिफतसालाह के गीत स्वाद से गाता हूँ, (मेरे अंदर) गुरू का शबद एक-रस अपना पूरा प्रभाव डाले रखता है।4।5।

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Sri Guru Granth Darpan, by Professor Sahib Singh