श्री गुरू ग्रंथ साहिब दर्पण । टीकाकार: प्रोफैसर साहिब सिंह । अनुवादक भुपिन्दर सिंह भाईख़ेल

Page 273

ब्रहम गिआनी सगल की रीना ॥ आतम रसु ब्रहम गिआनी चीना ॥ ब्रहम गिआनी की सभ ऊपरि मइआ ॥ ब्रहम गिआनी ते कछु बुरा न भइआ ॥ ब्रहम गिआनी सदा समदरसी ॥ ब्रहम गिआनी की द्रिसटि अम्रितु बरसी ॥ ब्रहम गिआनी बंधन ते मुकता ॥ ब्रहम गिआनी की निरमल जुगता ॥ ब्रहम गिआनी का भोजनु गिआन ॥ नानक ब्रहम गिआनी का ब्रहम धिआनु ॥३॥

पद्अर्थ: रीना = (चरणों की) धूल। आतम रसु = आत्मा का आनंद। चीना = पहिचाना। मइआ = खुशी, प्रसन्नता, मेहर। कछु = कोई, कोई (काम या बात)। सभदरसी = समदर्सी, (सब की तरफ) एक जैसा देखने वाला। बरसी = बरखा करने वाली। मुकता = आजाद। जुगता = युक्ति, तरीका, मर्यादा, जिंदगी गुजारने का तरीका।3।

अर्थ: ब्रहमज्ञानी सारे (बंदों) के पैरों की खाक (हो के रहता) है; ब्रहमज्ञानी ने आत्मिक आनंद को पहिचान लिया है।

बंहमज्ञानी की सब पर खुशी रहती है (भाव, ब्रहमज्ञानी सबके साथ हंसते माथे रहता है,) और वह कोई बुरा काम नहीं करता।

ब्रहमज्ञानी सदा सब ओर एक जैसी नजर से देखता है, उसकी नजर से (सब के ऊपर) अमृत की बरखा होती है।

ब्रहमज्ञानी (माया के) बंधनों से आजाद होता है, और उसकी जीवन-जुगति विकारों से रहित है।

(रूहानी-) ज्ञान ब्रहमज्ञानी की खुराक है (भाव, ब्रहमज्ञानी की आत्मिक जिंदगी का आसरा है), हे नानक! ब्रहमज्ञानी की तवज्जो अकाल-पुरख के साथ जुड़ी रहती है।3।

ब्रहम गिआनी एक ऊपरि आस ॥ ब्रहम गिआनी का नही बिनास ॥ ब्रहम गिआनी कै गरीबी समाहा ॥ ब्रहम गिआनी परउपकार उमाहा ॥ ब्रहम गिआनी कै नाही धंधा ॥ ब्रहम गिआनी ले धावतु बंधा ॥ ब्रहम गिआनी कै होइ सु भला ॥ ब्रहम गिआनी सुफल फला ॥ ब्रहम गिआनी संगि सगल उधारु ॥ नानक ब्रहम गिआनी जपै सगल संसारु ॥४॥

पद्अर्थ: आस = टेक, आसरा। बिनास = नाश, अभाव। ब्रहमज्ञानी कै = ब्रहमज्ञानी के मन में। समाहा = समाई हुई है, टिकी हुई है। उमाहा = उत्साह, चाव। ले = ले कर, काबू करके। बंधा = रोके रखता है, बाँध रखता है। सुफल = अच्छे फल वाला हो के, अच्छी मुराद से। फला = फलता है, कामयाब होता है। ब्रहमज्ञानी जपै = ब्रहमज्ञानी के द्वारा जपता है।4।

अर्थ: ब्रहमज्ञानी एक अकाल-पुरख पर आस रखता है; ब्रहमज्ञानी (की ऊँची आत्मिक अवस्था) का कभी विनाश नहीं होता।

ब्रहमज्ञानी के हृदय में गरीबी टिकी रहती है, और उसे दूसरों की भलाई करने का (सदा) चाव (चढ़ा रहता) है।

ब्रहमज्ञानी के मन में (माया का) जंजाल नहीं व्यापता, (क्योंकि) वह भटकते मन को काबू करके (माया की तरफ से) रोक सकता है।

जो कुछ (प्रभु द्वारा) होता है, ब्रहमज्ञानी को अपने मन में भला प्रतीत होता है, (इस तरह) उसका मानव जनम अच्छी तरह कामयाब होता है।

ब्रहमज्ञानी की संगति में सबका बेड़ा पार होता है, (क्योंकि) हे नानक! ब्रहमज्ञानी के द्वारा सारा जगत (ही) (प्रभु का नाम) जपने लग पड़ता है।4।

ब्रहम गिआनी कै एकै रंग ॥ ब्रहम गिआनी कै बसै प्रभु संग ॥ ब्रहम गिआनी कै नामु आधारु ॥ ब्रहम गिआनी कै नामु परवारु ॥ ब्रहम गिआनी सदा सद जागत ॥ ब्रहम गिआनी अह्मबुधि तिआगत ॥ ब्रहम गिआनी कै मनि परमानंद ॥ ब्रहम गिआनी कै घरि सदा अनंद ॥ ब्रहम गिआनी सुख सहज निवास ॥ नानक ब्रहम गिआनी का नही बिनास ॥५॥

पद्अर्थ: एकै = एक प्रभु का। रंग = प्यार। संग = साथ। अधारु = आसरा। सद = सदा। अहंबुधि = मैं मैं (कहने) वाली बुद्धि, अहंकार वाली मति। तिआगत = छोड़ देता है। मनि = मन में। परमानंद = परम आनंद वाला प्रभु, उच्च सुख का मालिक अकाल पुरख। सहज = अडोलता की हालत। बिनास = नाश, अभाव।5।

अर्थ: ब्रहमज्ञानी के हृदय में (सदा) एक अकाल-पुरख का प्यार (बसता है), (तभी तो) प्रभु ब्रहमज्ञानी के अंग-संग रहता है।

ब्रहमज्ञानी के मन में (प्रभु का) नाम (ही) टेक है और नाम ही उसका परिवार है।

ब्रहमज्ञानी सदा (विकारों के हमलों से) सुचेत रहता है, और ‘मैं मैं’ करने वाली मति त्याग देता है।

ब्रहमज्ञानी के मन में इस ऊँचे सुख का मालिक अकाल-पुरख बसता है, (तभी तो) उसके हृदय रूपी घर में सदा खुशी खिड़ाव है।

ब्रहमज्ञानी (मनुष्य) सुख और शांति में टिका रहता है; (और) हे नानक! ब्रहमज्ञानी (की इस ऊँची अवस्था) का कभी नाश नहीं होता।5।

ब्रहम गिआनी ब्रहम का बेता ॥ ब्रहम गिआनी एक संगि हेता ॥ ब्रहम गिआनी कै होइ अचिंत ॥ ब्रहम गिआनी का निरमल मंत ॥ ब्रहम गिआनी जिसु करै प्रभु आपि ॥ ब्रहम गिआनी का बड परताप ॥ ब्रहम गिआनी का दरसु बडभागी पाईऐ ॥ ब्रहम गिआनी कउ बलि बलि जाईऐ ॥ ब्रहम गिआनी कउ खोजहि महेसुर ॥ नानक ब्रहम गिआनी आपि परमेसुर ॥६॥

पद्अर्थ: बेता = (संस्कृत: विद् to know वेक्ता one who knows) जानने वाला, महिरम, वाकिफ। एक संगि = एक प्रभु से। हेता = हेत, प्यार। अचिंत = अनवेक्षा, बेफिक्री। निरमल = मल हीन, पवित्र करने वाला। मंत = मंत्र, उपदेश। बड = बड़ा। दरसु = दर्शन। पाईऐ = पाते हैं। बलि बलि = सदके। खोजहि = खोजते हैं, ढूँढते हैं। महेसुर = महा ईश्वर, शिव जी (आदि देवते)। परमेसुर = परमेश्वर, परमात्मा, अकाल-पुरख।6।

अर्थ: ब्रहमज्ञानी (मनुष्य) अकाल-पुरख का महरम बन जाता है और वह एक प्रभु के साथ ही प्यार करता है।

ब्रहमज्ञानी के मन में (सदैव) बेफिक्री रहती है, उसका उपदेश (भी और लोगों को) पवित्र करने वाला होता है।

ब्रहमज्ञानी का बड़ा नाम हो जाता है (पर, वही मनुष्य ब्रहमज्ञानी बनता है) जिसे प्रभु खुद बनाता है।

ब्रहमज्ञानी का दीदार बड़े भाग्यों से प्राप्त होता है, ब्रहमज्ञानी से सदा सदके जाएं।

शिव (आदि देवते भी) ब्रहमज्ञानी को तलाशते फिरते हैं; हे नानक! अकाल-पुरख स्वयं ही ब्रहमज्ञानी (का रूप) है।6।

ब्रहम गिआनी की कीमति नाहि ॥ ब्रहम गिआनी कै सगल मन माहि ॥ ब्रहम गिआनी का कउन जानै भेदु ॥ ब्रहम गिआनी कउ सदा अदेसु ॥ ब्रहम गिआनी का कथिआ न जाइ अधाख्यरु ॥ ब्रहम गिआनी सरब का ठाकुरु ॥ ब्रहम गिआनी की मिति कउनु बखानै ॥ ब्रहम गिआनी की गति ब्रहम गिआनी जानै ॥ ब्रहम गिआनी का अंतु न पारु ॥ नानक ब्रहम गिआनी कउ सदा नमसकारु ॥७॥

पद्अर्थ: सगल = सारे। मन माहि = मन में। भेदु = राज, मर्म। आदेसु = प्रणाम, नमस्कार। अधाख्यर = (महिमा का) आधा अक्षर (भी)। मिति = नाप, मर्यादा, अंदाजा। गति = हालत। बखानै = बयान करे।7।

अर्थ: ब्रहमज्ञानी (के गुणों) का मूल्य नहीं पड़ सकता, सारे ही (गुण) ब्रहमज्ञानी के अंदर हैं।

कौन सा मनुष्य ब्रहमज्ञानी (की उच्च जिंदगी) का भेद पा सकता है? ब्रहमज्ञानी के आगे सदा झुकना ही (फबता) है।

ब्रहमज्ञानी (की महिमा) का आधा अक्षर भी कहा नहीं जा सकता; ब्रहमज्ञानी सारे जीवों का पूज्य है

ब्रहमज्ञानी (की ऊँची जिंदगी) का अंदाजा कौन लगा सकता है? उस हालत को (उस जैसा) ब्रहमज्ञानी ही जानता है।

ब्रहमज्ञानी (के गुणों के समुंदर) की कोई सीमा नहीं; हे नानक! सदा ब्रहमज्ञानी के चरणों में पड़ा रह।7।

ब्रहम गिआनी सभ स्रिसटि का करता ॥ ब्रहम गिआनी सद जीवै नही मरता ॥ ब्रहम गिआनी मुकति जुगति जीअ का दाता ॥ ब्रहम गिआनी पूरन पुरखु बिधाता ॥ ब्रहम गिआनी अनाथ का नाथु ॥ ब्रहम गिआनी का सभ ऊपरि हाथु ॥ ब्रहम गिआनी का सगल अकारु ॥ ब्रहम गिआनी आपि निरंकारु ॥ ब्रहम गिआनी की सोभा ब्रहम गिआनी बनी ॥ नानक ब्रहम गिआनी सरब का धनी ॥८॥८॥

पद्अर्थ: स्रिसटि = दुनिया। सद = सदा। मुकति जुगति = मुक्ति का रास्ता। जीअ का दाता = (आत्मिक) जिंदगी देने वाला। बिधाता = पैदा करने वाला। पूरन पुरखु = सब में व्यापक प्रभु। नाथु = पति। सभ ऊपरि हाथु = सब की सहायता करता है। सगल अकारु = सारा दिखाई देता संसार। अकारु = स्वरूप। बनी = फबती है। धनी = मालिक।8।

अर्थ: ब्रहमज्ञानी सारे जगत को बनाने वाला है, सदा ही जीवित है, कभी (जनम) मरण के चक्कर में नहीं आता।

ब्रहमज्ञानी मुक्ति का राह (बताने वाला व उच्च आत्मिक) जिंदगी देने वाला है, वही पूर्ण पुरख व कादर है

ब्रहमज्ञानी निखस्मों का खसम है (अनाथों का नाथ है), सब की सहायता करता है।

सारा दिखाई देने वाला जगत ब्रहमज्ञानी का (अपना) है, वह (तो प्रत्यक्ष) स्वयं ही ईश्वर है।

ब्रहमज्ञानी की महिमा (कोई) ब्रहमज्ञानी ही कर सकता है; हे नानक! ब्रहमज्ञानी सब जीवों का मालिक है।8।8।

TOP OF PAGE

Sri Guru Granth Darpan, by Professor Sahib Singh