श्री गुरू ग्रंथ साहिब दर्पण । टीकाकार: प्रोफैसर साहिब सिंह । अनुवादक भुपिन्दर सिंह भाईख़ेल

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साहिबु सिमरहु मेरे भाईहो सभना एहु पइआणा ॥ एथै धंधा कूड़ा चारि दिहा आगै सरपर जाणा ॥ आगै सरपर जाणा जिउ मिहमाणा काहे गारबु कीजै ॥ जितु सेविऐ दरगह सुखु पाईऐ नामु तिसै का लीजै ॥ आगै हुकमु न चलै मूले सिरि सिरि किआ विहाणा ॥ साहिबु सिमरिहु मेरे भाईहो सभना एहु पइआणा ॥२॥

पद्अर्थ: पइआणा = पयाना, कूच। एथै = यहाँ, इस संसार में। सरपर = जरूर। मिहमाणा = मेहमान। गारबु = गर्व, अहंकार। जितु सेविऐ = जिसका स्मरण करने से। मूले = बिल्कुल। सिरि सिरि = हरेक के सिर पर। किआ = किया, अपना अपना किया कर्म। विहाणा = बिहाना, बीतता है।2।

अर्थ: हे मेरे भाईयो! (सदा स्थिर) मालिक प्रभु का स्मरण करो। (दुनिया से) कूच तो सभी ने करना है। दुनिया में माया का आहर चार दिनों के लिए ही है, (हरेक ने ही) यहाँ से आगे (परलोक में) अवश्य चले जाना है। यहाँ से आगे जरूर (हरेक ने) चले जाना है, (यहाँ जगत में) हम मेहमान की तरह ही हैं, (किसी भी धन-पदार्थ आदि का) गुमान करना व्यर्थ है। उस परमात्मा का ही नाम स्मरणा चाहिए जिसके स्मरण करने से परमात्मा की हजूरी में आत्मिक आनंद मिलता है। (जगत में तो धन-पदार्थ वाले का हुक्म चल सकता है, पर) परलोक में किसी का भी हुक्म बिल्कुल नहीं चल सकता, वहाँ तो हरेक के सिर पर (अपने-अपने) किए अनुसार बीतती है।

हे मेरे भाईयो! (सदा स्थिर) मालिक प्रभु का स्मरण करो। (दुनिया से) सभी ने ही चले जाना है।2।

जो तिसु भावै सम्रथ सो थीऐ हीलड़ा एहु संसारो ॥ जलि थलि महीअलि रवि रहिआ साचड़ा सिरजणहारो ॥ साचा सिरजणहारो अलख अपारो ता का अंतु न पाइआ ॥ आइआ तिन का सफलु भइआ है इक मनि जिनी धिआइआ ॥ ढाहे ढाहि उसारे आपे हुकमि सवारणहारो ॥ जो तिसु भावै सम्रथ सो थीऐ हीलड़ा एहु संसारो ॥३॥

पद्अर्थ: संम्रथ = सर्व शक्तिमान। हीलड़ा = बहाना। संसारो = (भाव) संसारी जीवों का प्रयास। महीअलि = मही तलि, धरती के तल पर, धरती के ऊपरी अंतरिक्ष में, आकाश में। अलख = अदृष्ट। इक मनि = एक मन से, तवज्जो/ध्यान जोड़ के। ढाहि = गिरा के। हुकमि = हुक्म अनुसार।3।

अर्थ: जगत के जीवों का उद्यम तो एक बहाना ही है, होता वही कुछ है जो उस सर्व-शक्तिमान प्रभु को भाता है। वह सदा-स्थिर रहने वाला विधाता पानी में धरती पर आकाश में हर जगह मौजूद है। वह प्रभु सदा स्थिर रहने वाला है, सबको पैदा करने वाला है, अदृष्ट है, बेअंत है, कोई भी जीव उसके गुणों का अंत नहीं पा सकता। जगत में पैदा उनका ही सफल कहा जाता है जिन्होंने उस बेअंत प्रभु को तवज्जो जोड़ के स्मरण किया है। वह परमात्मा स्वयं ही जगत-रचना को गिरा देता है, गिरा के खुद ही फिर बना लेता है, वह अपने हुक्म में जीवों को अच्छे जीवन वाले बनाता है।

जगत के जीवों का उद्यम तो एक बहाना ही है, होता वही कुछ है जो उस सर्व-शक्तिमान प्रभु को अच्छा लगता है।3।

नानक रुंना बाबा जाणीऐ जे रोवै लाइ पिआरो ॥ वालेवे कारणि बाबा रोईऐ रोवणु सगल बिकारो ॥ रोवणु सगल बिकारो गाफलु संसारो माइआ कारणि रोवै ॥ चंगा मंदा किछु सूझै नाही इहु तनु एवै खोवै ॥ ऐथै आइआ सभु को जासी कूड़ि करहु अहंकारो ॥ नानक रुंना बाबा जाणीऐ जे रोवै लाइ पिआरो ॥४॥१॥

अलाहणीईआ: किसी के मरने पर गाए जाने वाले गीत। जब कोई प्राणी मरता है तो भाईचारे की औरतें मिल के रोती हैं। मरासणें उस मरे प्राणी की तारीफ में कविता सी कोई तुक सुर में पढ़ती हैं, उसके पीछे वही तुक सारी औरतें मिल के सुर में पढ़ती हैं और साथ बिलखती हैं। ये बिलखना भी ताल में ही होता है। मिरासन के उस गीत को ‘अलाहणियां’ कहा जाता है। सतिगुरु जी ने इस रोने-धोने को मना किया है और परमात्मा की रजा में चलने व उसकी महिमा करने का उपदेश देते हैं।

पद्अर्थ: बाबा = हे भाई! रुंना जाणीऐ = सही मायने में वैराग में आया समझो। वालेवे कारणि = धन पदार्थ की खातिर। बिकारो = बे कार, व्यर्थ। गाफलु = बेखबर, लापरवाह। खोवै = नाश करता है। कूड़ि = नाशवान जगत की खातिर।4।

अर्थ: हे नानक! (कह: विछुड़े संबन्धियों की मौत पर तो हर कोई वैराग में आ जाता है, पर इस वैराग के कोई मायने नहीं) हे भाई! उसी मनुष्य को सही (रूप में) वैराग में आया समझो, जो प्यार से (परमात्मा के मिलाप की खातिर) वैराग में आता है। हे भाई! दुनिया के धन पदार्थों की खातिर जो रोते हैं वह रोना सारा ही व्यर्थ जाता है। परमात्मा से भूला हुआ जगत की माया की खातिर रोता है ये सारा ही रुदन व्यर्थ है। (इस रोने से) मनुष्य को अच्छे-बुरे काम की पहचान नहीं आती, (माया की खातिर रो-रो के) इस शरीर को व्यर्थ ही नाश कर लेता है। हे भाई! हरेक जीव जो जगत में (जन्म ले के) आया है (अपना समय गुजार के) चला जाएगा, नाशवान जगत के मोह में फंस के (व्यर्थ) गुमान करते हो।

हे नानक! (कह:) हे भाई! उसी मनुष्य को सही वैराग में आया समझो जो (परमात्मा के मिलाप की खातिर) प्यार से वैराग में आता है।4।1।

वडहंसु महला १ ॥ आवहु मिलहु सहेलीहो सचड़ा नामु लएहां ॥ रोवह बिरहा तन का आपणा साहिबु सम्हालेहां ॥ साहिबु सम्हालिह पंथु निहालिह असा भि ओथै जाणा ॥ जिस का कीआ तिन ही लीआ होआ तिसै का भाणा ॥ जो तिनि करि पाइआ सु आगै आइआ असी कि हुकमु करेहा ॥ आवहु मिलहु सहेलीहो सचड़ा नामु लएहा ॥१॥

पद्अर्थ: लएहां = हम लें। सचड़ा = सदा स्थिर रहने वाला। रोवह = हम रोएं, हम अफसोस करें। बिरहा = विछोड़ा। तन = शरीर। समालिह = हम याद करें। पंथु = रास्ता। निहालहि = हम देखें। कीआ = पैदा किया। लीआ = वापस ले लिया। भाणा = रजा। तिनि = उस जीव ने।1।

अर्थ: हे सहेलियो! (हे सत्संगी सज्जनों!) आओ, मिल के बैठें और परमात्मा का सदा स्थिर रहने वाला नाम स्मरण करें। आओ, प्रभु से अपने विछोड़े का बारंबार अफसोस से चेता करें, (वह वियोग दूर करने के लिए) मालिक प्रभु को याद करें। आओ, हम मालिक को दिल में बसाएं, और उस रास्ते को देखें (जिस रास्ते सब जा रहे हैं)। हमने भी (आखिर) उस परलोक में जाना है (जहाँ अनेक जा चुके हैं)। (किसी के मरने पर रोना व्यर्थ है) जिस प्रभु का ये पैदा किया हुआ था, उसने जीवात्मा वापस ले ली है, उसकी की रजा हुई है। यहाँ जगत में जीव ने जो कुछ किया, (मरने पर) उसके आगे आ जाता है। (इस ईश्वरीय नियम के आगे) हमारा कोई जोर नहीं चल सकता।

(इस वास्ते) हे सहेलियो! आओ, मिल के बैठें और सदा स्थिर रहने वाले प्रभु का नाम स्मरण करें।1।

मरणु न मंदा लोका आखीऐ जे मरि जाणै ऐसा कोइ ॥ सेविहु साहिबु सम्रथु आपणा पंथु सुहेला आगै होइ ॥ पंथि सुहेलै जावहु तां फलु पावहु आगै मिलै वडाई ॥ भेटै सिउ जावहु सचि समावहु तां पति लेखै पाई ॥ महली जाइ पावहु खसमै भावहु रंग सिउ रलीआ माणै ॥ मरणु न मंदा लोका आखीऐ जे कोई मरि जाणै ॥२॥

पद्अर्थ: लोका = हे लोगो! ऐसा = एसी मौत। संम्रथु = सब ताकतों वाला। सुहेला = आसान। पंथि सुहेलै = आसान रास्ते पर। आगै = प्रभु की हजूरी में। वडाई = इज्जत। भेटै सिउ = (नाम की) भेटा ले के। सचि = सदा स्थिर प्रभु में। लेखै = किए कर्मों के हिसाब के समय। महली = हजूरी में। रंग सिउ = प्रेम से।2।

अर्थ: हे लोगो! मौत को बुरा ना कहो (मौत अच्छी है, पर तब ही) अगर कोई मनुष्य उस तरीके से (जी के) मरना जानता हो। (वह तरीका ये है कि) अपने सर्व-शक्तिमान मालिक को स्मरण करो, (ताकि जीवन के सफर में) रास्ता आसान हो जाए (नाम-जपने की इनायत से) आसान जीवन-राह पर चलोगे तो इसका फल भी मिलेगा प्रभु की हजूरी में सम्मान मिलेगा। अगर प्रभु के नाम की भेटा ले के जाओगे तो उस सदा स्थिर प्रभु में एक-रूप हो जाओगे, किए कर्मों के हिसाब के समय इज्जत मिलेगी, प्रभु की हजूरी में स्थान प्राप्त करोगे, और पति-प्रभु को अच्छे लगोगे। (जो जीव ये भेटा ले के जाता है वह) प्रेम से आत्मिक आनंद लेता है।

हे लोगो! मौत को बुरा ना कहो (पर इस बात को वही समझता है) जो इस तरह मरना जानता हो।2।

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Sri Guru Granth Darpan, by Professor Sahib Singh