श्री गुरू ग्रंथ साहिब दर्पण । टीकाकार: प्रोफैसर साहिब सिंह । अनुवादक भुपिन्दर सिंह भाईख़ेल

Page 1166

मालु लेउ तउ दोजकि परउ ॥ दीनु छोडि दुनीआ कउ भरउ ॥११॥

पद्अर्थ: मालु = रिश्वत का धन। भरउ = इकट्ठी करूँ।11।

अर्थ: (उसने उक्तर दिया) अगर मैं रिश्वत लूँ तो दोज़क में पड़ता हूँ, (क्योंकि इस तरह तो) मैं मज़हब छोड़ के दौलत इकट्ठी करता हूँ।11।

पावहु बेड़ी हाथहु ताल ॥ नामा गावै गुन गोपाल ॥१२॥

पद्अर्थ: पावहु = पैरों में। हाथहु = हाथों से।12।

अर्थ: नामदेव के पैरों में बेड़ियाँ हैं, पर फिर भी वह हाथों से ताल दे दे के परमात्मा के गुण गाता है।12।

गंग जमुन जउ उलटी बहै ॥ तउ नामा हरि करता रहै ॥१३॥

अर्थ: अगर गंगा और जमुना उल्टी भी बहनें लग जाएं, तो भी नामा हरि के गुण गाता रहेगा (और दबाव में आ के खुदा खुदा नहीं कहेगा)।13।

सात घड़ी जब बीती सुणी ॥ अजहु न आइओ त्रिभवण धणी ॥१४॥

पद्अर्थ: त्रिभवण धनी = त्रिलोकी का मालिक प्रभु।14।

अर्थ: (बादशाह ने गाय जिंदा करने के लिए एक पहर की मोहलत दी हुई थी) जब (घड़ी पर) सात घड़ियां गुज़री सुनी, तो (मैंने नामे ने सोचा कि) अभी तक भी त्रिलोकी का मालिक प्रभु नहीं आया।14।

पाखंतण बाज बजाइला ॥ गरुड़ चड़्हे गोबिंद आइला ॥१५॥

पद्अर्थ: पाखंतण = पंख। बाज = बाजा। बजाइला = बजाया। आइला = आया।15।

अर्थ: (बस! उसी वक्त) पंखों के फड़कने की आवाज़ आई, विष्णू भगवान गरुड़ पर चढ़ कर आ गया।15।

अपने भगत परि की प्रतिपाल ॥ गरुड़ चड़्हे आए गोपाल ॥१६॥

पद्अर्थ: परि = ऊपर।16।

अर्थ: प्रभु जी गरुड़ पर चढ़ कर आ गए, और उन्होंने अपने भक्त की रक्षा कर ली।16।

कहहि त धरणि इकोडी करउ ॥ कहहि त ले करि ऊपरि धरउ ॥१७॥

पद्अर्थ: कहहि = अगर तू कहे। इकोडी = टेढ़ी, उल्टी। ले करि = पकड़ के। ऊपरि धरउ = मैं टांग दूँ।17।

अर्थ: (गोपाल ने कहा- हे नामदेव!) अगर तू कहे तो मैं धरती टेढ़ी कर दूँ, अगर तू कहे तो इसको पकड़ के उल्टा दूँ,।17।

कहहि त मुई गऊ देउ जीआइ ॥ सभु कोई देखै पतीआइ ॥१८॥

पद्अर्थ: पतीआइ = परता के, तसल्ली कर के।18।

अर्थ: अगर तू कहे तो मरी हुई गाया जीवित कर दूँ, और यहाँ हरेक व्यक्ति तसल्ली से देख ले।18।

नामा प्रणवै सेल मसेल ॥ गऊ दुहाई बछरा मेलि ॥१९॥

पद्अर्थ: सेलम = (अरबी) सलम, बाँधना (रस्सी के साथ)। सेल = (फारसी) सूल, खुर, पिछले पैर।19।

अर्थ: (गोपाल की इस कृपा पर) मैंने नामे ने (उन लोगों को) विनती की- (गऊ के पास उसका) बच्चा कर दो। (तो उन्होंने) बछड़ा छोड़ के गाय का दूध दुह लिया।19।

दूधहि दुहि जब मटुकी भरी ॥ ले बादिसाह के आगे धरी ॥२०॥

पद्अर्थ: दुहि = दुह के (दूध)।20।

अर्थ: दूध दुह के जब उन्होंने मटकी भर ली तो वह ले के बादशाह के आगे रख दी।20।

बादिसाहु महल महि जाइ ॥ अउघट की घट लागी आइ ॥२१॥

पद्अर्थ: अउघट की घट = मुश्किल घड़ी।21।

अर्थ: बादशाह महलों में चला गया (और वहाँ उस पर) मुश्किल घड़ी आ गई (भाव, वह सहम गया)।21।

काजी मुलां बिनती फुरमाइ ॥ बखसी हिंदू मै तेरी गाइ ॥२२॥

पद्अर्थ: फुरमाइ = हुक्म कर। बखसी = मुझे बख्श। हिंदू = हे हिन्दू!।22।

अर्थ: अपने काज़ियों और मौलवियों के ज़रिए उसने विनती (भेज डाली) - हे हिंदू! मुझे हुक्म कर (जो हुक्म तू देगा मैं करूँगा), मुझे बख्श, मैं तेरी गाय हूँ।22।

नामा कहै सुनहु बादिसाह ॥ इहु किछु पतीआ मुझै दिखाइ ॥२३॥

पद्अर्थ: पतीआ = तसल्ली।23।

अर्थ: नामा कहता है: हे बादशाह! सुन, मुझे एक तसल्ली करवा दे,।23।

इस पतीआ का इहै परवानु ॥ साचि सीलि चालहु सुलितान ॥२४॥

पद्अर्थ: परवान = माप, अंदाजा। साचि = सच में। सीलि = अच्छे स्वभाव में।24।

अर्थ: इस इकरार का माप ये होगा कि हे बादशाह! तू (आगे से) सच्चाई पर चलेगा, अच्छे स्वभाव में रहेगा।24।

नामदेउ सभ रहिआ समाइ ॥ मिलि हिंदू सभ नामे पहि जाहि ॥२५॥

पद्अर्थ: सभु = हर जगह, घर घर में।25।

अर्थ: (यह करिश्मा सुन देख के) घर-घर में नामदेव की बातें होने लगीं, (नगर के) सारे हिन्दू मिल के नामदेव के पास आए (और कहने लगे-)।25।

जउ अब की बार न जीवै गाइ ॥ त नामदेव का पतीआ जाइ ॥२६॥

अर्थ: अगर अबकी बार गाय ना जिंदा होती तो नामदेव का ऐतबार जाता रहना था।26।

नामे की कीरति रही संसारि ॥ भगत जनां ले उधरिआ पारि ॥२७॥

पद्अर्थ: रही = कायम हो गई। संसारि = संसार में।27।

अर्थ: पर प्रभु ने अपने भगतों को, अपने सेवकों को चरणों से लगा के पार कर दिया है, नामदेव की शोभा जगत में बनी रही है;।27।

सगल कलेस निंदक भइआ खेदु ॥ नामे नाराइन नाही भेदु ॥२८॥१॥१०॥

पद्अर्थ: खेदु = दुख।28।

अर्थ: (यह शोभा सुन के) निंदकों को बड़ा कष्ट और बड़ा दुख हुआ है (क्योंकि वे यह नहीं जानते कि) नामदेव और परमात्मा में कोई दूरी नहीं रह गई।28।1।10।

नोट: इसी ही राग के शब्द नंबर 6 की आखिरी तुक में शब्द ‘भक्त जनां’ आया है, यहाँ भी बंद नं: 27 में यही शब्द है। दोनों जगहों पर नामदेव जी अपनी आपबीती सुना के आम असूल की बात सुनाते हैं कि प्रभु अपने भक्तों की इज्जत रखता है।

नोट: बंद नं: 14,15, 16 में नामदेव जी परमात्मा का यह स्वरूप बिलकुल पुराणों के अनुसार हिन्दुओं वाला बताते हैं, क्योंकि एक मुसलमान बादशाह जान से मारने का डरावा देता है और चाहता है कि नामदेव मुसलमान बन जाए। नामदेव जी की माँ समझाती भी है, पर, वे निडर हैं। वैसे भी नामदेव जी परमात्मा के किसी खास स्वरूप के पुजारी नहीं हैं। इसी ही राग में आखिरी शब्द में देखिए, परमात्मा को ‘अब्दाली’ कह के कहते हैं कि मेरे छैणे तूने ही छिनवाए थे। जहाँ हिन्दू अपनी ऊँची जाति का मान कर के नामदेव को मन्दिर से बाहर निकालते हैं, वहाँ नामदेव जी प्रभु को ‘कलंदर, अब्दाली’ कह के मुसलमानी पहरावे और मुसलमानी शब्दों में याद करते हैं।

शब्द का भाव: स्मरण करने वालों को कोई डर नहीं सता सकता।

घरु २ ॥ जउ गुरदेउ त मिलै मुरारि ॥ जउ गुरदेउ त उतरै पारि ॥ जउ गुरदेउ त बैकुंठ तरै ॥ जउ गुरदेउ त जीवत मरै ॥१॥

अर्थ: अगर गुरु मिल जाए तो रब मिल जाता है, (संसार-समुंदर से मनुष्य) पार लांघ जाता है, (यहाँ से) तैर के बैकुंठ में जा पहुँचता है, (दुनिया में) रहते हुए (विकारों से उसका मन) मरा रहता है।1।

सति सति सति सति सति गुरदेव ॥ झूठु झूठु झूठु झूठु आन सभ सेव ॥१॥ रहाउ॥

पद्अर्थ: सति = सदा स्थिर रहने वाली। गुरदेव = गुरु (की सेवा)। आन = अन्य।1। रहाउ।

अर्थ: और सब (देवताओं की) सेवा-पूजा व्यर्थ है, व्यर्थ है, व्यर्थ है। ये यकीन जानो कि गुरु की सेवा ही सदा-स्थिर रहने वाला उद्यम है।1। रहाउ।

जउ गुरदेउ त नामु द्रिड़ावै ॥ जउ गुरदेउ न दह दिस धावै ॥ जउ गुरदेउ पंच ते दूरि ॥ जउ गुरदेउ न मरिबो झूरि ॥२॥

पद्अर्थ: दहदिस = दसों दिशाओं में। पंच = कामादिक।2।

अर्थ: अगर गुरु मिल जाए तो वह नाम जपने का स्वभाव पक्का कर देता है, (फिर मन) दसों दिशाओं में नहीं दौड़ता, पाँच कामादिक से बचा रहता है, (चिन्ता-फिक्र में) झुर-झुर के नहीं खपता।2।

जउ गुरदेउ त अम्रित बानी ॥ जउ गुरदेउ त अकथ कहानी ॥ जउ गुरदेउ त अम्रित देह ॥ जउ गुरदेउ नामु जपि लेहि ॥३॥

पद्अर्थ: अकथ = उस प्रभु की जो बयान नहीं हो सकता। अंम्रित = पवित्र। देह = शरीर।3।

अर्थ: अगर गुरु मिल जाए तो मनुष्य के बोल मीठे हो जाते हैं, अकथ प्रभु की बातें करने लग जाता है, शरीर पवित्र हो रहता है, (क्योंकि फिर यह सदा) नाम जपता है।3।

जउ गुरदेउ भवन त्रै सूझै ॥ जउ गुरदेउ ऊच पद बूझै ॥ जउ गुरदेउ त सीसु अकासि ॥ जउ गुरदेउ सदा साबासि ॥४॥

पद्अर्थ: सीसु = सिर, दिमाग़, मन। अकासि = आकाश में, ऊँचे ठिकाने में, प्रभु चरणों में।4।

अर्थ: अगर गुरु ईश्वर मिल जाए तो मनुष्य को तीनों भवनों की सूझ हो जाती है (भाव, यह समझ आ जलाती है कि प्रभु तीनों भवनों में ही मौजूद है), ऊँची आत्मिक अवस्था से जान-पहचान हो जाती है, मन प्रभु-चरणों में टिका रहता है (हर जगह से) सदा शोभा मिलती है।4।

जउ गुरदेउ सदा बैरागी ॥ जउ गुरदेउ पर निंदा तिआगी ॥ जउ गुरदेउ बुरा भला एक ॥ जउ गुरदेउ लिलाटहि लेख ॥५॥

पद्अर्थ: लिलाटहि = माथे पर।5।

अर्थ: अगर गुरु मिल जाए तो मनुष्य (दुनिया में रहता हुआ ही) सदा विरक्त रहता है, किसी की निंदा नहीं करता, अच्छे-बुरे सब से प्यार करता है। गुरु को मिल के ही माथे के अच्छे लेख उघड़ते हैं।5।

TOP OF PAGE

Sri Guru Granth Darpan, by Professor Sahib Singh