श्री गुरू ग्रंथ साहिब दर्पण । टीकाकार: प्रोफैसर साहिब सिंह । अनुवादक भुपिन्दर सिंह भाईख़ेल

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गूजरी महला ४ घरु २    ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ हरि बिनु जीअरा रहि न सकै जिउ बालकु खीर अधारी ॥ अगम अगोचर प्रभु गुरमुखि पाईऐ अपुने सतिगुर कै बलिहारी ॥१॥ मन रे हरि कीरति तरु तारी ॥ गुरमुखि नामु अम्रित जलु पाईऐ जिन कउ क्रिपा तुमारी ॥ रहाउ ॥ सनक सनंदन नारद मुनि सेवहि अनदिनु जपत रहहि बनवारी ॥ सरणागति प्रहलाद जन आए तिन की पैज सवारी ॥२॥ अलख निरंजनु एको वरतै एका जोति मुरारी ॥ सभि जाचिक तू एको दाता मागहि हाथ पसारी ॥३॥ भगत जना की ऊतम बाणी गावहि अकथ कथा नित निआरी ॥ सफल जनमु भइआ तिन केरा आपि तरे कुल तारी ॥४॥ मनमुख दुबिधा दुरमति बिआपे जिन अंतरि मोह गुबारी ॥ संत जना की कथा न भावै ओइ डूबे सणु परवारी ॥५॥ निंदकु निंदा करि मलु धोवै ओहु मलभखु माइआधारी ॥ संत जना की निंदा विआपे ना उरवारि न पारी ॥६॥ एहु परपंचु खेलु कीआ सभु करतै हरि करतै सभ कल धारी ॥ हरि एको सूतु वरतै जुग अंतरि सूतु खिंचै एकंकारी ॥७॥ रसनि रसनि रसि गावहि हरि गुण रसना हरि रसु धारी ॥ नानक हरि बिनु अवरु न मागउ हरि रस प्रीति पिआरी ॥८॥१॥७॥ {पन्ना 506-507}

पद्अर्थ: जीअरा = कमजोर जीवात्मा। खीर = दूध। अधार = आसरा। खीर अधारी = खीर अधारि, दूध के सहारे पर। अगम = अपहुँच। अगोचर = अ+गो+च+र, जिस तक ज्ञान इन्द्रियों की पहुँच नहीं हो सकती। गुरमुखि = गुरू की ओर मुंह करने से, गुरू की शरण पड़ने से। कै = से।1।

कीरति = सिफत सलाह। तरु तारी = तारी तैर, पार लांघने का उद्यम कर। अंम्रित जलु = आत्मिक जीवन देने वाला जल। रहाउ।

सेवहि = सेवा भक्ति करते हैं। अनदिनु = हर रोज। बनवारी = जगत का मालिक प्रभू। पैज = इज्जत। सवारी = बनाए रखी।2।

अलख = अदृश्य। निरंजन = (निर+अंजन) माया कालिख से रहित, निर्लिप। जाचिक = मंगते। पसारि = पसार के, फैला के।3।

अकथ = जिसका सही स्वरूप बयान ना किया जा सके। निआरी = अनोखी। केहा = का। तारी = तैरा ली।4।

मनमुख = अपने मन के पीछे चलने वाले मनुष्य। दुबिधा = डांवाडोल हालत। बिआपे = फसे रहते हैं। गुबारी = अंधेरा। न भावै = अच्छी नहीं लगती। ओइ = (शब्द ‘ओह’ का बहुवचन)। सणु = समेत।5।

करि = कर के। धोवै = धोता है। मलभखु = मैल खाने वाला।6।

परपंच = जगत पसारा। करतै = करतार ने। कल = सक्ता, ताकत। जुग अंतरि = जगतमें। खिंचै = खींच लेता है।7।

(नोट: पाठक ध्यान रखें– शब्द ‘जुग’ कलियुग आदि किसी ‘युग’ के लिए नहीं फब सकता)।

रसनि रसनि रसि = प्रेम से, प्रेम से, प्रेम से। रसना = जीभ। मागउ = मैं माँगता हूँ।8।

अर्थ: हे (मेरे) मन! परमात्मा की सिफत सालाह के द्वारा (संसार समुंद्र से) पार लांघने का यत्न किया कर। हे मन! आत्मिक जीवन देने वाला हरि-नाम-जल गुरू की शरण पड़ने से मिलता है। (पर, हे प्रभू! तेरा नाम-जल उनको ही मिलता है) जिनपे तेरी कृपा हो। रहाउ।

हे भाई! मेरी कमजोर जिंद परमात्मा (के मिलाप) के बिना धैर्य नहीं धर सकती, जैसा छोटा बच्चा दूध के सहारे ही जीता है। हे भाई! वह प्रभू! जो अपहुँच है (जिस तक जीव अपनी समझदारी के बल पर नहीं पहुँच सकता), जिस तक मनुष्य की ज्ञानेन्द्रियों की पहुँच नहीं हो सकती, गुरू की शरण पड़ने से ही मिलता है, (इस वास्ते) मैं अपने गुरू से सदा सदके जाता हूँ।1।

(हे भाई! इस संसार समुंद्र से पार लंघाने के लिए) सनक सनंदन (आदि ऋषि) नारद (आदि) मुनी जगत के मालिक प्रभू की ही सेवा करते (रहे) हैं, हर समय (प्रभू का नाम ही) जपते (रहे) हैं। प्रहलाद (आदि जो जो) भगत परमात्मा की शरण आए, परमात्मा उनकी इज्जत बचाता रहा।2।

हे भाई! सारे जगत में एक अदृश्य और निर्लिप परमात्मा ही बस रहा है, सारे संसार में परमात्मा का नूर ही प्रकाश कर रहा है।

हे प्रभू! एक तू ही (सब जीवों को) दातें देने वाला है, सारे जीव (तेरे दर पे) मंगते हैं (तेरे आगे) हाथ पसार के मांग रहे हैं।3।

हे भाई! परमात्मा की भक्ति करने वाले लोगों के वचन अमोलक हो जाते हैं, वह सदा उस परमात्मा की अनोखी सिफत सालाह के गीत गाते रहते हैं जिसका स्वरूप बयान नहीं किया जा सकता, (सिफत सलाह की बरकति से) उनका मानस जनम कामयाब हो जाता है, वह खुद (संसार समुंद्र से) पार लांघ जाते हैं, अपनी कुलों को भी लंघा लेते हैं।4।

हे भाई! अपने मन के पीछे चलने वाले मनुष्य दुचित्ता-पन में और बुरी मति (के प्रभाव) में फंसे रहते हैं, क्योंकि उनके हृदय में (माया के) मोह का अंधेरा पड़ा रहता है। (अपने मन के पीछे चलने वाले लोगों को) संत जनों की (की हुई परमात्मा की सिफत सालाह की) बात नहीं भाती (इस वास्ते) वह अपने परिवार समेत (विकार भरे संसार समुंद्र में) डूब जाते हैं।5।

हे भाई! निंदा करने वाला मनुष्य (दूसरों की) निंदा कर करके (उनके किए बुरे कर्मों की) मैल तो धो देता है, पर वह खुद माया-ग्रसित मनुष्य पराई मैल खाने का आदी बन जाता है। हे भाई! जो मनुष्य संत जनों की निंदा करने में फंसे रहते हैं वह (इस निंदा के समुंद्र में से) ना इस पार आ सकते हैं ना परली तरफ जा सकते हैं।6।

(पर, हे भाई! जीव के भी क्या वश?) ये सारा जगत-तमाशा करतार ने खुद बनाया है, करतार ने ही इसमें अपनी सत्ता टिकाई हुई है। सारे जगत में सिर्फ परमात्मा की सत्ता का धागा पसरा हुआ है, जब वह इस धागे को खींच लेता है (तो जगत-तमाशा अलोप हो जाता है, और) परमात्मा खुद ही खुद रह जाता है।7।

(हे भाई! जो मनुष्य इस संसार समुंद्र से सही सलामत पार लांघना चाहते हैं वह) सदा ही प्रेम प्यार से परमात्मा के गुण गाते रहते हैं, उनकी जीभ परमात्मा के नाम-रस को चखती रहती है।

हे नानक! (कह–) मैं परमातमा के नाम के बिना और कुछ नहीं मांगता (मैं यही चाहता हूँ कि) परमात्मा के नाम-रस की प्रीति प्यारी लगती रहे।8।1।7।

गूजरी महला ५ घरु २    ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ राजन महि तूं राजा कहीअहि भूमन महि भूमा ॥ ठाकुर महि ठकुराई तेरी कोमन सिरि कोमा ॥१॥ पिता मेरो बडो धनी अगमा ॥ उसतति कवन करीजै करते पेखि रहे बिसमा ॥१॥ रहाउ ॥ सुखीअन महि सुखीआ तूं कहीअहि दातन सिरि दाता ॥ तेजन महि तेजवंसी कहीअहि रसीअन महि राता ॥२॥ सूरन महि सूरा तूं कहीअहि भोगन महि भोगी ॥ ग्रसतन महि तूं बडो ग्रिहसती जोगन महि जोगी ॥३॥ करतन महि तूं करता कहीअहि आचारन महि आचारी ॥ साहन महि तूं साचा साहा वापारन महि वापारी ॥४॥ दरबारन महि तेरो दरबारा सरन पालन टीका ॥ लखिमी केतक गनी न जाईऐ गनि न सकउ सीका ॥५॥ नामन महि तेरो प्रभ नामा गिआनन महि गिआनी ॥ जुगतन महि तेरी प्रभ जुगता इसनानन महि इसनानी ॥६॥ सिधन महि तेरी प्रभ सिधा करमन सिरि करमा ॥ आगिआ महि तेरी प्रभ आगिआ हुकमन सिरि हुकमा ॥७॥ जिउ बोलावहि तिउ बोलह सुआमी कुदरति कवन हमारी ॥ साधसंगि नानक जसु गाइओ जो प्रभ की अति पिआरी ॥८॥१॥८॥ {पन्ना 507}

पद्अर्थ: कहीअहि = तू कहा जाता है। भूमा = मूमि का मालिक। ठाकुर = मालिक, सरदार। ठकुराई = सरदारी। कोमा = (ऊँची) कुल वाला। सिरि = सिर पर, श्रेष्ठ। कोमन सिरि = ऊँची कुल वालों के सिर पर।1।

धनी = मालिक। अगमा = अपहुँच। उसतति = महिमा। करते = हे करतार! पेखि = देख के। बिसमा = हैरान।1। रहाउ।

दातन सिरि = दाताओं में शिरोमणी। तेजन महि = तेज प्रताप वालों में। राता = रता हुआ, रस में मस्त।2।

सूरा = शूरवीर। भोगन महि = भोगने वालों में। जोगन महि = विरक्तों में।3।

करतन महि = नए काम करने वालों में। आचारन महि = धार्मिक रस्में करने वालों में।4।

सरन पालन टीका = शरन पड़ने वालों की लाज रखने वालों का तू टिॅका (शिरोमणि) है। केतक = कितनी? बेअंत। गनि न सकउ = मैं गिन नहीं सकता। सीका = सिक्के, रुपए, खजाने।5।

नामन मनि = नामवरों में। नामा = प्रसिद्ध। जुगतन महि = अच्छी जीवन जुगति वालों में।6।

सिधन महि = करामाती ताकत वालों में। सिधा = करामाती ताकत। करमन सिरि = कर्म करने वालों में शिरोमणि। आगिआ = हुकम। हुकमन सिरि = हुकम करने वालों में शिरोमणि।7।

बोलावहि = तू बोलाता है। बोलह = हम बोलते हैं। सुआमी = हे स्वामी! कुदरति = ताकत। साध संगि = गुरू की संगति में। गाइओ = गाया।8।

अर्थ: हे करतार! तू मेरा पिता है, तू हमारी समझदारी की पहुँच से परे है। हे करतार! तेरी कौन-कौन सी उपमा हम करें? (तेरी लीला) देख-देख के हम हैरान हो रहे हैं।1। रहाउ।

हे करतार! (दुनिया के) राजाओं में तू (शिरोमणि) राजा कहलवाता है, जमीन के मालिकों में (सबसे बड़ा) भूपति है। हे करतार! (दुनिया के) सरदारों में तेरी सरदारी (सबसे बड़ी) है, ऊँची कुल वालों में तू शिरोमणी कुल वाला है।1।

हे करतार! (दुनिया के) सुखी लोगों में तूं (शिरोमणि) सुखी कहा जा सकता है, दुनिया में तू ही (शिरोमणि) तेजस्वी कहा जा सकता है (दुनिया के) रस भोगने वालों में तू शिरोमणि रसिया है।2।

हे करतार! सूरमों में तू शिरोमणि शूरवीर कहलवाने का हकदार है, (दुनिया के सब जीवों में व्यापक होने के कारण) भोगियों में तू ही भोगी है। गृहस्थियों में तू सबसे बड़ा गृहस्थी है (जिसका इतना बड़ा संसार-परिवार है), जोगियों में तू शिरोमणि जोगी है (इतने बड़े परिवार के होते हुए भी निर्लिप है)।3।

हे करतार! नए काम करने वाले समझदारों में तू शिरोमणि रचनहार है; धार्मिक रस्में करने वालों में भी तू ही शिरोमणि है। हे करतार! (दुनिया के) शाहूकारों में तू सदा कायम रहने वाला (शिरोमणि) शाहूकार है, और व्यापारियों में तू बड़ा व्यापारी है (जिसने इतना बड़ा जगत-पसारा पसारा हुआ है)।4।

हे करतार! (दुनिया के) दरबार लगाने वालों में तेरा दरबार शिरोमणि है, शरण पड़ों की लाज रखने वालों का तू शिरोमणि टिॅका है। हे करतार! तेरे घर में कितना धन है– इसका अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। मैं तेरे खजाने गिन नहीं सकता।5।

हे प्रभू! (दुनिया के) महा महिमों-नामवरों में तेरी प्रसिद्धि शिरोमणि है, और ज्ञानवानों में तू ही शिरोमणि ज्ञानी है। हे प्रभू! अच्छी जीवन-जुगति वालों में तेरी श्रेष्ठ है, (दुनिया के तीर्थ-) स्नानियों में तू शिरोमणि स्नानी है (क्योंकि सारे जलों में तू सदा खुद ही बस रहा है)।6।

हे प्रभू! करामाती ताकतें रखने वालों में तेरी करामातें शिरोमणि हैं, काम करने वालों में तू ही शिरोमणि उद्यमी है। हे प्रभू! (दुनिया के) हासिल कर्ताओं में तेरा इख्तियार सबसे बड़ा है, (दुनिया के) हुकम चलाने वालों में तू सबसे बड़ा हाकिम है।7।

हे करतार! हे स्वामी! हमारी (तेरे पैदा किए हुए जीवों की) क्या बिसात है? जैसे तू हमें बोलाता है वैसे ही हम बोलते हैं।

हे नानक! (कह– करतार की प्रेरणा से ही मनुष्य ने) साध-संगति में टिक के प्रभू की सिफत-सालाह की है, ये सिफत-सालाह प्रभू को बड़ी प्यारी लगती है।8।1।8।

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Sri Guru Granth Darpan, by Professor Sahib Singh