श्री गुरू ग्रंथ साहिब दर्पण । टीकाकार: प्रोफैसर साहिब सिंह । अनुवादक भुपिन्दर सिंह भाईख़ेल |
Page 1006 मारू महला ५ ॥ त्रिपति आघाए संता ॥ गुर जाने जिन मंता ॥ ता की किछु कहनु न जाई ॥ जा कउ नाम बडाई ॥१॥ लालु अमोला लालो ॥ अगह अतोला नामो ॥१॥ रहाउ ॥ अविगत सिउ मानिआ मानो ॥ गुरमुखि ततु गिआनो ॥ पेखत सगल धिआनो ॥ तजिओ मन ते अभिमानो ॥२॥ निहचलु तिन का ठाणा ॥ गुर ते महलु पछाणा ॥ अनदिनु गुर मिलि जागे ॥ हरि की सेवा लागे ॥३॥ पूरन त्रिपति अघाए ॥ सहज समाधि सुभाए ॥ हरि भंडारु हाथि आइआ ॥ नानक गुर ते पाइआ ॥४॥७॥२३॥ {पन्ना 1006} पद्अर्थ: त्रिपति = तृप्ति। अघाऐ = तृप्त हो गए। त्रिपति अघाऐ = पूरी तौर पर संतुष्ट हो जाते हैं, अघा जाते हैं। गुर...मंता = जिन्होंने गुरू उपदेश के साथ पूरी सांझ डाल ली। ता की = उन (मनुष्यों) की। नाम बडाई = नाम जपने की इज्जत (मिली)।1। अमोला = जो किसी भी कीमत पर ना मिल सके। अगह = (अ+गह) जो पकड़ में ना आ सके। अतोला = जिसके बराबर की और कोई चीज़ नहीं। नामो = नाम।1। रहाउ। अविगत = (अव्यक्त) अदृष्ट। सिउ = साथ। मानो = मन। गुरमुखि = गुरू से। ततु = अस्लियत। गिआनो = आत्मिक जीवन की सूझ। पेखत सगल = सबको देखते हुए, सबके साथ मेल मिलाप रखते हुए। ते = से।2। ठाणा = जगह, आत्मिक ठिकाना। निहचलु = ना हिलने वाला। महलु = परमात्मा की हजूरी। पछाणा = सांझ डाल ली। अनदिनु = हर रोज, हर वक्त। गुरि मिलि = गुरू को मिल के। जागे = माया के मोह की नींद से सचेत हो गए।3। स्हज = आत्मिक अडोलता। सुभाऐ = प्रेम में (टिके हुए)। हाथि = हाथ में।4। अर्थ: हे भाई! परमात्मा का नाम एक ऐसा लाल है जो किसी (दुनियावी) कीमति से नहीं मिलता, जो (आसानी से) पकड़ा नहीं जा सकता, जिसके बराबर की और कोई चीज़ नहीं।1। रहाउ। हे भाई! जिन संत जनों ने गुरू के उपदेश के साथ गहरी सांझ डाल ली, वे (अमूल्य नाम रूपी लाल रत्न का सौदा करके माया की ओर से) पूरी तरह से तृप्त हो गए। जिनको परमात्मा का नाम जपने की वडिआई प्राप्त हो जाती है उनकी (आत्मिक अवस्था इतनी ऊँची बन जाती है कि) बयान नहीं की जा सकती।1। हे भाई! (जिनको नाम रूपी लाल प्राप्त हो गया) अदृष्ट परमात्मा के साथ उनका मन पतीज गया, गुरू की शरण पड़ कर उनको असल आत्मिक जीवन की सूझ प्राप्त हो गई। सारे जगत से मेल-मिलाप रखते हुए उनकी सुरति प्रभू-चरणों में रहती है, वे अपने मन से अहंकार दूर कर लेते हैं।2। हे भाई! (जिन्हें नाम-लाल मिल गया) उनका आत्मिक ठिकाना अटल हो जाता है (उनका मन माया से डोलने से हट जाता है), वे मनुष्य गुरू से (शिक्षा ले के) प्रभू-चरणों से गहरी सांझ डाल लेते हैं। गुरू को मिल के (गुरू की शरण पड़ कर) वे हर वक्त (माया के हमलों से) सचेत रहते हैं, सदा परमात्मा की सेवा-भगती में लगे रहते हैं।3। हे भाई! (जिनको नाम-लाल मिल जाता है) वे माया की तृष्णा से पूरी तरह से तृप्त रहते हैं, वे प्रभू के प्यार में टिके रहते हैं, उनकी आत्मिक अडोलता वाली समाधि बनी रहती है, (क्योंकि) परमात्मा का नाम-खजाना उनके हाथ आ जाता है। पर, हे नानक! (ये खजाना) गुरू से ही मिलता है।4।7।23। मारू महला ५ घरु ६ दुपदे ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ छोडि सगल सिआणपा मिलि साध तिआगि गुमानु ॥ अवरु सभु किछु मिथिआ रसना राम राम वखानु ॥१॥ मेरे मन करन सुणि हरि नामु ॥ मिटहि अघ तेरे जनम जनम के कवनु बपुरो जामु ॥१॥ रहाउ ॥ दूख दीन न भउ बिआपै मिलै सुख बिस्रामु ॥ गुर प्रसादि नानकु बखानै हरि भजनु ततु गिआनु ॥२॥१॥२४॥ {पन्ना 1006} पद्अर्थ: सगल = सारी। मिलि साध = गुरू को मिल के। गुमानु = अहंकार। मिथिआ = नाशवंत। रसना = जीभ से। वखानु = उच्चारण कर।1। मन = हे मन! करन = कानों से। मिटहि = मिट जाएंगे। अघ = पाप (बहुवचन)। जामु = जम। बपुरा = बेचारा।1। रहाउ। दीन = दीनता, मुथाजी। न बिआपै = अपना जोर नहीं डाल सकता। मिलै = मिल जाता है। सुख बिस्राम = सुखों का ठिकाना। गुर प्रसादि = गुरू की कृपा से। नानकु बखानै = नानक कहता है। ततु गिआनु = असल आत्मिक जीवन की सूझ।2। अर्थ: हे मेरे मन! कानों से परमात्मा का नाम सुना कर। (नाम की बरकति से) तेरे अनेकों जन्मों के (किए हुए) पाप मिट जाएंगे। बेचारा जम भी कौन है (जो तुझे डरा सके) ?।1। रहाउ। हे भाई! सारी (फोकी) चतुराईयाँ छोड़ दे, गुरू को मिल के (अपने अंदर से) अहंकार दूर कर। अपनी जीभ से परमात्मा का नाम सिमरा कर। (नाम के बिना) और सब कुछ नाशवंत है।1। हे भाई! नानक कहता है (जो मनुष्य नाम सिमरता है उस पर दुनिया के) दुख, मुथाजगी, (हरेक किस्म का) डर - (इनमें से कोई भी) अपना जोर नहीं डाल सकते। परमात्मा का भजन करना ही असल आत्मिक जीवन की सूझ है (पर ये नाम) गुरू की कृपा से (ही मिलता है)।2।1।24। मारू महला ५ ॥ जिनी नामु विसारिआ से होत देखे खेह ॥ पुत्र मित्र बिलास बनिता तूटते ए नेह ॥१॥ मेरे मन नामु नित नित लेह ॥ जलत नाही अगनि सागर सूखु मनि तनि देह ॥१॥ रहाउ ॥ बिरख छाइआ जैसे बिनसत पवन झूलत मेह ॥ हरि भगति द्रिड़ु मिलु साध नानक तेरै कामि आवत एह ॥२॥२॥२५॥ {पन्ना 1006} पद्अर्थ: से = वह (बहुवचन)। होत देखे खेह = राख होते देखे जाते हैं, विकारों के आग के समुंद्र में जल के राख होते देखे जाते हैं। बिलास = रंग रलियाँ। बनिता = स्त्री। ऐ नेह = ये सारे प्यार।1। मन = हे मन! नित नित = सदा ही। जलत नाही = जलता नहीं। अगनि सागर = तृष्णा की आग का समुंद्र। मनि = मन में। तनि = तन में। देह = शरीर।1। रहाउ। बिरख = वृक्ष। छाइआ = छाया। पवन = हवा। मेह = मेघ, बादल। झूलत = उड़ा के ले जाती है। द्रिढ़ ु = दृढ़, हृदय में पक्की कर। मिलु साध = गुरू को मिल। तेरै कामि = तेरे काम में। ऐह = ये भक्ति ही।2। अर्थ: हे मेरे मन! सदा ही परमात्मा का नाम जपा कर। (हे भाई! जो मनुष्य परमात्मा का नाम जपता है वह तृष्णा की) आग के समुंद्रों में जलता नहीं, उसके मन में तन में देही में सुख-आनंद बना रहता है।1। रहाउ। (हे मेरे मन!) जिन मनुष्यों ने परमात्मा का नाम भुला दिया, वह (विकारों की आग के समुंद्र में जल के) राख होते देखे जाते हैं। पुत्र, मित्र, स्त्री (आदि संबंधी जिनसे मनुष्य दुनियां की) रंग-रलियाँ (करता है) - ये सारे प्यार (आखिर) टूट जाते हैं।1। हे नानक! (कह- हे भाई!) जैसे वृक्ष की छाया नाश हो जाती है, (जल्दी ही बदलती जाती है) वैसे ही हवा भी बादलों को उड़ा के ले जाती है (और उनकी छाया समाप्त हो जाती है इसी तरह दुनियावी विलास नाशवंत हैं)। हे भाई! गुरू को मिल और अपने हृदय में परमात्मा की भक्ति पक्की कर। यही तेरे काम आने वाली है।2।2।25। मारू महला ५ ॥ पुरखु पूरन सुखह दाता संगि बसतो नीत ॥ मरै न आवै न जाइ बिनसै बिआपत उसन न सीत ॥१॥ मेरे मन नाम सिउ करि प्रीति ॥ चेति मन महि हरि हरि निधाना एह निरमल रीति ॥१॥ रहाउ ॥ क्रिपाल दइआल गोपाल गोबिद जो जपै तिसु सीधि ॥ नवल नवतन चतुर सुंदर मनु नानक तिसु संगि बीधि ॥२॥३॥२६॥ {पन्ना 1006} पद्अर्थ: पुरखु पूरन = सर्व व्यापक परमात्मा। सुखह दाता = सारे सुखों को देने वाला। संगि = (हरेक के) साथ। नीत = सदा। आवै न जाइ = ना पैदा होता ह ैना मरता है। उसन = गर्मी, शोक। सीत = ठण्डक, खुशी, हर्ष। न बिआपत = जोर नहीं डाल सकती।1। मन = हे मन! सिउ = साथ। मन महि = मन में। चेति = चेते कर, याद कर। निधाना = (सारे गुणों का) खजाना। रीति = जीवन मर्यादा, जिंदगी गुजारने का तरीका। निरमल = पवित्र।1। रहाउ। गोपाल = सृष्टि को पालने वाला। सीधि = सिद्धि, सफलता। नवल = नया। नवतन = नया। चतुर = समझदार। नानक = हे नानक! बीधि = बेध ले, परोए रख।2। अर्थ: हे मेरे मन! परमात्मा के नाम से प्यार डाले रख। हे भाई! जो प्रभू सारे गुणों का खजाना है उसको अपने मन में याद किया कर। जिंदगी को पवित्र रखने का यही तरीका है।1। रहाउ। हे मेरे मन! वह सर्व-व्यापक परमात्मा सारे सुख देने वाला है, और सदा ही (हरेक के) साथ बसता है। वह ना पैदा होता है ना मरता है, वह नाश-रहित है। ना खुशी ना ग़मी - कोई भी उसके ऊपर अपना प्रभाव नहीं डाल सकता।1। हे भाई! परमात्मा कृपा का घर है दया का श्रोत है, सृष्टि को पालने वाला गोबिंद है। जो मनुष्य (उसका नाम) जपता है उसको जिंदगी में कामयाबी प्राप्त हो जाती है। हे नानक! (कह- हे भाई!) परमात्मा हर वक्त नया है (परमात्मा का प्यार हर वक्त नया है), परमात्मा समझदार है सुंदर है। उससे (उसके चरणों में) अपना मन परोए रख।2।3।26। मारू महला ५ ॥ चलत बैसत सोवत जागत गुर मंत्रु रिदै चितारि ॥ चरण सरण भजु संगि साधू भव सागर उतरहि पारि ॥१॥ मेरे मन नामु हिरदै धारि ॥ करि प्रीति मनु तनु लाइ हरि सिउ अवर सगल विसारि ॥१॥ रहाउ ॥ जीउ मनु तनु प्राण प्रभ के तू आपन आपु निवारि ॥ गोविद भजु सभि सुआरथ पूरे नानक कबहु न हारि ॥२॥४॥२७॥ {पन्ना 1006-1007} पद्अर्थ: चलत = चलते, विचरते हुए। गुर मंत्रु = गुरू का उपदेश। रिदै = हृदय में। भजु = भाग जा। संगि साधू = गुरू की संगति में। भव सागर = संसार समुंद्र।1। मन = हे मन! धारि = टिकाए रख। सिउ = साथ। विसारि = बिसार के, भुला के।1। रहाउ। जीउ = जिंद। आपन आपु = अपने आप को, स्वै भाव, अहंकार। निवारि = दूर कर। सभि = सारे। सुआरथ = स्वार्थ, मनोरथ, जरूरतें। नानक = हे नानक!।2। अर्थ: हे मेरे मन! परमात्मा का नाम हृदय में टिकाए रख। हे भाई! मन लगा के तन लगा के (तन से मन से) और सारे (चिंता-फिक्र) भुला के परमात्मा के साथ प्यार बनाए रख।1। रहाउ। हे भाई! चलते फिरते, बैठते, सोए हुए, जागते हुए - हर वक्त गुरू का उपदेश हृदय में याद रख। गुरू की संगति में रह के (परमात्मा के) चरणों का आसरा ले, (इस तरह) तू संसार-समुंद्र से पार लांघ जाएगा।1। हे नानक! (कह- हे भाई!) ये जिंद, ये मन, ये शरीर, ये प्राण - (सब कुछ) परमात्मा के ही दिए हुए हैं (तू गुमान किस बात का करता है?) स्वै भाव दूर कर। गोबिंद का भजन किया कर, तेरी सारी जरूरतें भी पूरी होंगी, और, (मनुष्य जन्म की बाजी भी) कभी नहीं हारेगा।2।4।27। |
Sri Guru Granth Darpan, by Professor Sahib Singh |