श्री गुरू ग्रंथ साहिब दर्पण । टीकाकार: प्रोफैसर साहिब सिंह । अनुवादक भुपिन्दर सिंह भाईख़ेल |
Page 1157 भैरउ महला ५ ॥ सतिगुरि मो कउ कीनो दानु ॥ अमोल रतनु हरि दीनो नामु ॥ सहज बिनोद चोज आनंता ॥ नानक कउ प्रभु मिलिओ अचिंता ॥१॥ कहु नानक कीरति हरि साची ॥ बहुरि बहुरि तिसु संगि मनु राची ॥१॥ रहाउ ॥ अचिंत हमारै भोजन भाउ ॥ अचिंत हमारै लीचै नाउ ॥ अचिंत हमारै सबदि उधार ॥ अचिंत हमारै भरे भंडार ॥२॥ अचिंत हमारै कारज पूरे ॥ अचिंत हमारै लथे विसूरे ॥ अचिंत हमारै बैरी मीता ॥ अचिंतो ही इहु मनु वसि कीता ॥३॥ अचिंत प्रभू हम कीआ दिलासा ॥ अचिंत हमारी पूरन आसा ॥ अचिंत हम्हा कउ सगल सिधांतु ॥ अचिंतु हम कउ गुरि दीनो मंतु ॥४॥ {पन्ना 1157} पद्अर्थ: सतिगुरि = गुरू ने। मो कउ = मुझे। अमोल = जो किसी भी मूल्य में ना मिल सके। सहज बिनोद = आत्मिक अडोलता के आनंद। आनंता = बेअंत। अचिंता = (जीवों के मन की) चिंता दूर करने वाला।1। कहु = कहो। नानक = हे नानक! कीरति = सिफत सालाह। साची = सदा स्थिर रहने वाली। बहुरि बहुरि = बारबार। तिसु संगि = उस (सिफत सालाह) से। राची = जोड़ी रख।1। रहाउ। अचिंत भाउ = चिंता दूर करने वाले परमात्मा का प्यार। हमारै = मेरे वास्ते। लीचै = लिया जाता है। अचिंत नाउ = अचिंत प्रभू का नाम। अचिंत सबदि = चिंता दूर करने वाले प्रभू की सिफत सालाह से। उधार = उद्धार, पार उतारा।2। पूरे = सफल होते हैं। विसूरे = चिंता झोरे। मीता = मित्र। अचिंतो ही = चिंता दूर करने वाला हरी का नाम ले के ही। वसि = काबू में।3। हम = हमें, मुझे। दिलासा = हौसला। हमा कउ = मेरे वास्ते। सिधांतु = सिद्धांत, धर्म का निचोड़। अचिंतु = चिंता दूर करने वाले प्रभू का नाम। गुरि = गुरू ने। मंतु = उपदेश।4। अर्थ: हे नानक! (कह- हे भाई!) परमात्मा की सदा कायम रहने वाली उपमा किया कर। अपने मन को बार-बार उस (सिफत-सालाह) से जोड़े रख।1। रहाउ। हे भाई! गुरू ने मुझे (यह) दाति बख्शी है, (गुरू ने मुझे वह) नाम-रतन दिया है जो किसी भी मूल्य से नहीं मिल सकता। (मुझे) नानक को (गुरू की कृपा से) चिंता दूर करने वाला परमात्मा आ मिला है, (अब मेरे अंदर) आत्मिक अडोलता के बेअंत आनंद-तमाशे बने रहते हैं।1। हे भाई! (गुरू की कृपा से अब) चिंता दूर करने वाले प्रभूका प्यार ही मेरे लिए (आत्मिक जीवन की) ख़ुराक है, मेरे अंदर अचिंत प्रभू का नाम ही सदा लिया जा रहा है, अचिंत प्रभू की सिफतसालाह की बाणी द्वारा विकारों से मेरा बचाव हो रहा है। (गुरू की कृपा से) मेरे अंदर चिंता दूर करने वाले परमात्मा के नाम-खजाने भरे गए हैं।2। हे भाई! चिंता दूर करने वाले परमात्मा के नाम की बरकति से मेरे सारे काम सफल हो रहे हैं, (मेरे अंदर से सारे) चिंता-फिक्र समाप्त हो गए हैं, अब मुझे वैरी भी मित्र दिखाई दे रहे हैं। चिंता दूर करने वाला हरी-नाम ले कर ही मैंने अपना यह मन वश में कर लिया है।3। हे भाई! चिंता दूर करने वाले परमात्मा ने मुझे हौसला बख्शा है, मेरी सारी आशाएं पूरी हो गई हैं। चिंता दूर करने वाले प्रभू का नाम जपना ही मेरे वास्ते सारे धर्मों का निचोड़ है। हे भाई! यह नाम-मंत्र मुझे गुरू ने दिया है।4। अचिंत हमारे बिनसे बैर ॥ अचिंत हमारे मिटे अंधेर ॥ अचिंतो ही मनि कीरतनु मीठा ॥ अचिंतो ही प्रभु घटि घटि डीठा ॥५॥ अचिंत मिटिओ है सगलो भरमा ॥ अचिंत वसिओ मनि सुख बिस्रामा ॥ अचिंत हमारै अनहत वाजै ॥ अचिंत हमारै गोबिंदु गाजै ॥६॥ अचिंत हमारै मनु पतीआना ॥ निहचल धनी अचिंतु पछाना ॥ अचिंतो उपजिओ सगल बिबेका ॥ अचिंत चरी हथि हरि हरि टेका ॥७॥ अचिंत प्रभू धुरि लिखिआ लेखु ॥ अचिंत मिलिओ प्रभु ठाकुरु एकु ॥ चिंत अचिंता सगली गई ॥ प्रभ नानक नानक नानक मई ॥८॥३॥६॥ {पन्ना 1157} पद्अर्थ: बैर = वैर विरोध (बहुवचन)। अंधेर = माया के मोह के अंधेरे। अचिंते ही = चिंता दूर करने वाले प्रभू का नाम (जप के) ही। मनि = मन में। घटि घटि = हरेक शरीर में।5। सगलो = सारा। बिस्रामा = विश्राम, ठिकाना। अनहत = एक रस, लगातार, बिना साज़ बजाए। वाजै = बज रहा है, राग हो रहा है। गाजै = गरज रहा है, पूरा प्रभाव डाल रहा है।6। पतीआना = पतीज गया है भटकने से हट गया है। निहचल धनी = सदा कायम रहने वाला मालिक। पछाना = पहचान लिया है, सांझ डाल ली है। बिबेका = अच्छेबुरेकाम की परख। चरी = चढ़ी है। हथि = हाथ में। टेक = आसरा।7। धुरि = धुर दरगाह से। अचिंता = चिंता दूर करने वाला हरी नाम। चिंत सगली = सारी चिंता। प्रभ मई = प्रभू का रूप।8। अर्थ: हे भाई! चिंता दूर करने वाले परमात्मा के नाम जप के (मेरे अंदर से सारे) वैर विरोध नाश हो गए हैं, (मेरे अंदर से) माया के मोह के अंधेरे दूर हो गए हैं। हे भाई! चिंता दूर करने वाला हरी-नाम जप के ही मेरे मन को परमात्मा की सिफतसालाह प्यारी लग रही है, और उस परमात्मा को मैंने हरेक हृदय में बसता देख लिया है।5। हे भाई! चिंता दूर करने वाले हरी-नाम की बरकति से मेरी सारी भटकना समाप्त हो गई है, (जब से) अचिंत प्रभू मेरे मन में आ बसा है, मेरे अंदर आत्मिक आनंद का (पक्का) ठिकाना बन गया है। अब मेरे अंदर चिंता दूर करने वाले हरी-नाम का एक-रस निरंतर बाजा बज रहा है, मेरे अंदर गोबिंद का नाम ही हर वक्त गूँज रहा है।6। हे भाई! चिंता दूर करने वाले हरी-नाम की बरकति से मेरा मन भटकने से हट गया है, अचिंत हरी-नाम जप के मैंने सदा कायम रहने वाले मालिक-प्रभू के साथ सांझ डाल ली है। चिंता दूर करने वाला हरि-नाम जप के ही मेरे अंदर अच्छे-बुरे काम की सारी पहचान (करने की क्षमता अर्थात विवेक) पैदा हो गई है। इस अचिंत हरी-नामकी मुझे सदा के लिए टेक मिल गई है।7। हे भाई! जिस मनुष्य के माथे पर प्रभू ने चिंता दूर करने वाले हरी-नाम की प्राप्ति का लेख धुर दरगाह से लिख दिया है, उसको वह सबका मालिक प्रभू मिल जाता है। हे भाई! चिंता दूर करने वाला हरी-नाम जप के मेरी सारी चिंता दूर हो गई है, अब मैं नानक सदा के लिए प्रभू में लीन हो गया हूँ।8।3।6। अंकों का वेरवा: भैरउ बाणी भगता की ॥ कबीर जीउ घरु १ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ इहु धनु मेरे हरि को नाउ ॥ गांठि न बाधउ बेचि न खाउ ॥१॥ रहाउ ॥ नाउ मेरे खेती नाउ मेरे बारी ॥ भगति करउ जनु सरनि तुम्हारी ॥१॥ नाउ मेरे माइआ नाउ मेरे पूंजी ॥ तुमहि छोडि जानउ नही दूजी ॥२॥ नाउ मेरे बंधिप नाउ मेरे भाई ॥ नाउ मेरे संगि अंति होइ सखाई ॥३॥ माइआ महि जिसु रखै उदासु ॥ कहि कबीर हउ ता को दासु ॥४॥१॥ {पन्ना 1157} पद्अर्थ: मेरे = मेरे पास। को = का। गांठि = गाँठ। गांठि न बाधउ = मैं पल्ले गाँठ बांध के नहीं रखता, मैं कंजूसों की तरह छुपा के नहीं रखता। बेचि न खाउ = मैं इस को बेच के भी नहीं खाता, मैं इस धन को फजूल में नहीं खरचता, मैं इस धन का दिखावा भी नहीं करता।1। रहाउ। बारी = वाड़ी, बगीची। करउ = करूँ, मैं करता हूँ। जनु = (मैं) दास।1। माइआ = धन। पूँजी = राशि। दूजी = और कोई राशि पूँजी।2। बंधिप = सम्बंधी। भाई = भ्राता। संगि = साथ। सखाई = सहाई, सहायता करने वाला।3। जिसु = जिस (मनुष्य) को। उदासु = निर्लिप। ता को = उसका।4। नोट: मनुष्य जीवन निर्वाह के लिए धन कमाना शुरू करता है। सहजे ही इससे इतना मोह बन जाता है कि धन ही जिंदगी का आसरा बन जाता है। अपने शरीर के निर्वाह के लिए अपने हाथ से ही कमाई करनी है, किसी और पर अपना भार नहीं डालना, पर धन को जिंदगी का मनोरथ नहीं बना लेना - यह है उपदेश इस शबद में। अर्थ: प्रभू का यह नाम मेरे लिए धन है (जैसे लोग धन को जीवन का सहारा बना लेते हैं, मेरे जीवन का सहारा प्रभू का नाम ही है, पर) मैं ना तो इसे छुपा के रखता हूँ, और ना ही दिखावे के लिए इस्तेमाल करता हूँ।1। रहाउ। (कोई मनुष्य खेती-बाड़ी को आसरा मानता है, पर) मेरे लिए प्रभू का नाम ही खेती है, और नाम ही बगीची है। हे प्रभू! मैं तेरा दास तेरी ही शरण हूँ, और तेरी भक्ति करता हूँ।1। हे प्रभू! तेरा नाम ही मेरे लिए माया है और राशि पूँजी है (व्यापार करनेके लिए। भाव, व्यापार शारीरिक निर्वाह के वास्ते है, मेरी जिंदगी का सहारा नहीं है)। हे प्रभू! तुझे विसार के मैं किसी और राशि-पूँजी के साथ सांझ नहीं डालता।2। प्रभू का नाम ही मेरे लिए रिश्तेदार है, नाम ही मेरा भाई है; नाम ही मेरा आखिर में सहायता करने वाला बन सकता है।3। कबीर कहता है- मैं उस मनुष्य का सेवक हूँ जिसको प्रभू माया में रहते हुए को माया से निर्लिप रखता है।4।1। |
Sri Guru Granth Darpan, by Professor Sahib Singh |