श्री गुरू ग्रंथ साहिब दर्पण । टीकाकार: प्रोफैसर साहिब सिंह । अनुवादक भुपिन्दर सिंह भाईख़ेल

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घर की नारि तिआगै अंधा ॥ पर नारी सिउ घालै धंधा ॥ जैसे सि्मबलु देखि सूआ बिगसाना ॥ अंत की बार मूआ लपटाना ॥१॥ पापी का घरु अगने माहि ॥ जलत रहै मिटवै कब नाहि ॥१॥ रहाउ ॥ हरि की भगति न देखै जाइ ॥ मारगु छोडि अमारगि पाइ ॥ मूलहु भूला आवै जाइ ॥ अम्रितु डारि लादि बिखु खाइ ॥२॥ जिउ बेस्वा के परै अखारा ॥ कापरु पहिरि करहि सींगारा ॥ पूरे ताल निहाले सास ॥ वा के गले जम का है फास ॥३॥ जा के मसतकि लिखिओ करमा ॥ सो भजि परि है गुर की सरना ॥ कहत नामदेउ इहु बीचारु ॥ इन बिधि संतहु उतरहु पारि ॥४॥२॥८॥ {पन्ना 1165}

पद्अर्थ: घालै धंधा = बुरे कर्म करता है, झख मारता है। सूआ = तोता। बिगसाना = खुश होता है। लपटाना = (पर तन विकार में) फस के।1।

अगने माहि = आग में।1।

अमारगि = गलत रास्ते पर। मूलहु = जगत के मूल प्रभू से। डारि = डोल के। लादि = लाद के, संच के।2।

अखारा = अखाड़ा, तमाशा। पूरे ताल = नाचती है। निहाले = ताकती है, ध्यान से देखती है। सास = सूर।3।

मसतकि = माथे पर। करमा = बख्शिश (का लेख)। भजि = दौड़ के। परि है = पड़ता है। इन बिधि = इस तरीके से, गुरू की शरण पड़ कर।4।

अर्थ: विकारी बँदे का ठिकाना सदा उस आग में रहता है जो आग सदा जलती रहती है, कभी बुझती नहीं।1। रहाउ।

अंधा (पापी) अपनी पत्नी का त्याग कर देता है, और पराई औरत के साथ झखें मारता है, (पराई नारि को देख के वह ऐसे खुश होता है) जैसे तोता सिंबल वृक्ष को देख के खुश होता है (पर उस सिंबल से उस तोते को कुछ हासिल नहीं होता); आखिर में ऐसा विकारी मनुष्य (इस विकार) में ग्रसा हुआ ही मर जाता है।1।

जहाँ प्रभू की भक्ति होती है (विकारी मनुष्य) वह जगह जा के नहीं देखता, (जीवन का सीधा) राह छोड़ के (विकारों के) उल्टे रास्ते पर पड़ता है, जगत के मूल प्रभू से टूट के जनम-मरण के चक्कर में पड़ जाता है, नाम-अमृत डोल के (गिरा के) (विकारों का) जहर लाद के खाता है।2।

जैसे वैश्या के मुजरे होते हैं, (सुंदर-सुंदर) पोशाकें पहन के श्रृंगार करती हैं। वैश्या नाचती है, और बड़े ध्यान से अपने सुर को तोलती है, (बस, इस विकारी जीवन के कारण) उसके गले में जमों का फंदा पड़ता है।3।

नामदेव यह एक विचार के वचन कहता है- जिस मनुष्य के माथे पर प्रभू की बख्शिश (का लेख) लिखा हुआ है (भाव, पिछले किए कर्मों के अनुसार धुर से बख्शिश होती है) वह (विकारों से) हट के सतिगुरू की शरण पड़ता है। हे संत जनो! गुरू की शरण पड़ कर ही (संसार-समुंद्र के विकारों से) पार लांघ सकोगे।4।2।8।

शबद का भाव: विकारी का जीवन- विकारों की ना-बुझने वाली आगसदा उसको जलाती रहती है। प्रभू की मेहर हो तो गुरू की शरण पड़ने से खलासी होती है।

संडा मरका जाइ पुकारे ॥ पड़ै नही हम ही पचि हारे ॥ रामु कहै कर ताल बजावै चटीआ सभै बिगारे ॥१॥ राम नामा जपिबो करै ॥ हिरदै हरि जी को सिमरनु धरै ॥१॥ रहाउ ॥ बसुधा बसि कीनी सभ राजे बिनती करै पटरानी ॥ पूतु प्रहिलादु कहिआ नही मानै तिनि तउ अउरै ठानी ॥२॥ दुसट सभा मिलि मंतर उपाइआ करसह अउध घनेरी ॥ गिरि तर जल जुआला भै राखिओ राजा रामि माइआ फेरी ॥३॥ काढि खड़गु कालु भै कोपिओ मोहि बताउ जु तुहि राखै ॥ पीत पीतांबर त्रिभवण धणी थ्मभ माहि हरि भाखै ॥४॥ हरनाखसु जिनि नखह बिदारिओ सुरि नर कीए सनाथा ॥ कहि नामदेउ हम नरहरि धिआवह रामु अभै पद दाता ॥५॥३॥९॥ {पन्ना 1165}

पद्अर्थ: संडा मरका = शुक्राचार्य के दो पुत्र संड और अमरक जो प्रहलाद को पढ़ाने के लिए नियुक्त किए गए थे। पचि हारे = थक के हार गए। कर = हाथों से। चटीआ = विद्यार्थी।1।

जपिबो करै = सदा जपता रहता है।1। रहाउ।

बसुधा = धरती। पटरानी = बड़ी रानी (प्रहलाद की माँ)। तिनि = उस (प्रहलाद) ने। अउरै = कोई और बात ही। ठानी = मन में पक्की की हुई है।2।

मंतर उपाइआ = सलाह पका ली। करसह = हम कर देंगे। करसह...घनेरी = उम्र समाप्त कर देंगे, मार डालेंगे। गिरि = पहाड़। तर = वृक्ष। जुआला = आग। भै राखिओ = डरों से बचा लिया। रामि = राम ने। माइआ फेरी = माया का स्वभाव उलट दिया।3।

खड़गु = तलवार। कालु = मौत। भै = (अंदर से) डर से। कोपिओ = गुस्से में आया। मोहि = मुझे। तुहि = तुझे। पीतांबर = पीले कपड़ों वाला कृष्ण, प्रभू। त्रिभवण धणी = तीनों भवनों का मालिक, परमात्मा। भाखै = बोलता है।4।

जिनि = जिस प्रभू ने। नखह = नाखूनों से। बिदारिओ = चीर डाला। सनाथा = स+नाथ, पति वाले। नरहरि = परमात्मा। अभै पद दाता = निडरता का दर्जा देने वाला।5।

अर्थ: (प्रहलाद) हर वक्त परमात्मा का नाम सिमरता है, परमात्मा के नाम का सिमरन अपने हृदय में धारण किए रखता है।1। रहाउ।

(प्रहलाद के दोनों उस्ताद, अध्यापक) संड और अमरक ने (हर्णाकश्यप् के पास) जा के फरियाद की- हम थक-हार गए हैं, प्रहलाद पढ़ता नहीं, वह हाथों से ताल बजाता है, और राम-नाम गाता है, और सारे विद्यार्थी भी उसने बिगाड़ दिए हैं।1।

(प्रहलाद की माँ) बड़ी रानी (प्रहलाद के आगे) तरले करती है (और समझाती है कि तेरे पिता) राजे ने सारी धरती अपने वश में की हुई है (उसकी आज्ञा का उलंघन ना कर), पर पुत्र प्रहलाद (माँ का) कहा नहीं मानता, उसने तो कोई और ही बात मन में दृढ़ की हुई है।2।

दुष्टों की जुण्डली ने मिल के सलाह कर ली- (अगर प्रहलाद नहीं मानता तो) हम इसे मार डालेंगे; पर जगत के मालिक प्रभू ने अपनी माया का स्वभाव ही बदल डाला, (प्रभू ने प्रहलाद को) पहाड़, वृक्ष, पानी, आग (इन सबके) डर से बचा लिया।3।

(अब अंदर से) डरा हुआ (पर बाहर से) क्रोधवान हो के, मौत-रूप तलवार निकाल के (बोला-) मुझे बताओ जो तुझे (इस तलवार से) बचा सकता है; (आगे से) जगत का मालिक परमात्मा खम्भे में से बोलता है।4।

नामदेव कहता है-जिस प्रभू ने हर्णाकश्यप को नाखूनों से चीर दिया, देवताओं और मनुष्यों को ढारस दी (सांत्वना दी), मैं भी उसी प्रभू को सिमरता हूँ; प्रभू ही निर्भयता का दर्जा बख्शने वाला है।5।3।9।

शबद का भाव: सिमरन की महिमा- दुनिया का कोई डर पोह नहीं सकता।

नोट: इस शबद को इसी राग में दिए हुए गुरू अमरदास जी के शबद (पन्ना 1133) के साथ मिला के पढ़िए;

भैरउ महला ३॥ मेरी पटीआ लिखहु हरि गोविंद गोपाला॥ दूजै भाइ फाथे जम जाला॥ सतिगुरु करे मेरी प्रतिपाला॥ हरि सुखदाता मेरै नाला॥१॥ गुर उपदेसि प्रहिलादु हरि उचरै॥ सासना ते बालकु गमु न करै॥१॥ रहाउ॥ माता उपदेसै प्रहिलाद पिआरे॥ पुत्र राम नामु छोडहु जीउ लेहु उबारे॥ प्रहिलादु कहै सुनहु मेरी माइ॥ राम नामु न छोडा गुरि दीआ बुझाइ॥२॥ संडा मरका सभि जाइ पुकारे॥ प्रहिलादु आपि विगड़िआ सभि चाटड़े विगाड़े॥ दुसट सभा महि मंत्रु पकाइआ॥ प्रहलाद का राखा होइ रघुराइआ॥३॥ हाथि खड़गु करि धाइआ अति अहंकारि॥ हरि तेरा कहा तुझु लऐ उबारि॥ खिन महि भैआनु रूपु निकसिआ थंम् उपाड़ि॥ हरणाखसु नखी बिदारिआ प्रहलादु लीआ उबारि॥४॥ संत जना के हरि जीउ कारज सवारे॥ प्रहलाद जन के इकीह कुल उधारे॥ गुर कै सबदि हउमै बिखु मारे॥ नानक राम नामि संत निसतारे॥५॥१०॥२०॥ (पन्ना ११३३)

जिस मनुष्य ने भगत प्रहलाद की साखी कभी ना सुनी हो, उसको नामदेव जी का शबद पढ़ के असल साखी समझने के लिए कई बातें पूछने की आवश्यक्ता रह जाती है। उन सारे सवालों के जवाब गुरू अमरादास जी ने इस शबद में दे दिए हैं। दोनों शबदों की 'रहाउ' की तुक पढ़ के देखें; नामदेव जी ने जो बात खोल के नहीं थी बताई, गुरू अमरदास जी ने कितने सुंदर शब्दों में वह बयान कर दी है। नामदेव जी के शबद का दूसरा बँद पढ़ के गुरू अमरदास जी के शबद का दूसरा बँद पढ़ें, मन में उल्लास पैदा होता है, नामदेव जी के बरते हुए शब्द 'बिनती' को गुरू अमरदास जी ने किस तरह प्यार भरे शब्दों में समझाया है।

ये बात बिल्कुल स्पष्ट है कि नामदेव जी का यह शबद गुरू अमरदास जी के सामने मौजूद है। ये ख्याल गलत है कि भगतों के शबद गुरू अरजन देव जी ने एकत्र किए थे।

नामदेव जी के इस शबद में कुछ ऐसे शब्दों के प्रयोग हुए मिलते हैं जो गुरबाणी को खोज-विचार के पढ़ने वालों के लिए बड़े ही मजेदार हैं। बंद नंबर-3 में नामदेव जी लिखते हैं "राजा रामि माइआ फेरी"। प्रहलाद जी की साखी सतियुग के समय की बताई जाती है, श्री राम अवतार त्रेते युग में हुए, यह साखी श्री रामचंद्र जी के पहले की है। सो, शब्द "राजा रामि' श्री राम चंद्र जी के बाबत नहीं है। यही शब्द भगत रविदास जी ने भी कई बार बरता है, सिर्फ इतने प्रयोग से ये ख्याल बना लेना भारी गलती का सबब है कि रविदास जी श्री राम चंद्र जी के उपासक थे।

बँद नंबर-8 में उसी "राजा राम" के प्रथाय नामदेव जी कहते हैं "पीत पीतांबर त्रिभवण धणी, थंभ माहि हरि भाखै"। शब्द 'पीतांबर' कृष्ण जी का नाम है। पर भगत नामदेव जी यहाँ कृष्ण जी का वर्णन नहीं कर रहे। कृष्ण जी द्वापर में हुए, श्री रामचंद्र जी के भी बाद में। और यह साखी है सतियुग की। जैसे इस शबद के शब्द 'पीतांबर' से ये फैसला कर लेना भारी भूल है कि नामदेव जी कृष्ण जी के उपासक थे, वैसे ही उनके द्वारा बरते गए शब्द 'बीठुल' से उनको कृष्ण जी की बीठुल-मूर्ति का पुजारी समझ लेना भी गलत है। नामदेव जी के किसी भी शबद से ये जाहिर नहीं होता कि उन्होंने कभी किसी बिठुल मूर्ति की पूजा की।

सुलतानु पूछै सुनु बे नामा ॥ देखउ राम तुम्हारे कामा ॥१॥ नामा सुलताने बाधिला ॥ देखउ तेरा हरि बीठुला ॥१॥ रहाउ ॥ बिसमिलि गऊ देहु जीवाइ ॥ नातरु गरदनि मारउ ठांइ ॥२॥ बादिसाह ऐसी किउ होइ ॥ बिसमिलि कीआ न जीवै कोइ ॥३॥ मेरा कीआ कछू न होइ ॥ करि है रामु होइ है सोइ ॥४॥ बादिसाहु चड़्हिओ अहंकारि ॥ गज हसती दीनो चमकारि ॥५॥ रुदनु करै नामे की माइ ॥ छोडि रामु की न भजहि खुदाइ ॥६॥ न हउ तेरा पूंगड़ा न तू मेरी माइ ॥ पिंडु पड़ै तउ हरि गुन गाइ ॥७॥ करै गजिंदु सुंड की चोट ॥ नामा उबरै हरि की ओट ॥८॥ काजी मुलां करहि सलामु ॥ इनि हिंदू मेरा मलिआ मानु ॥९॥ बादिसाह बेनती सुनेहु ॥ नामे सर भरि सोना लेहु ॥१०॥ मालु लेउ तउ दोजकि परउ ॥ दीनु छोडि दुनीआ कउ भरउ ॥११॥ पावहु बेड़ी हाथहु ताल ॥ नामा गावै गुन गोपाल ॥१२॥ गंग जमुन जउ उलटी बहै ॥ तउ नामा हरि करता रहै ॥१३॥ सात घड़ी जब बीती सुणी ॥ अजहु न आइओ त्रिभवण धणी ॥१४॥ पाखंतण बाज बजाइला ॥ गरुड़ चड़्हे गोबिंद आइला ॥१५॥ अपने भगत परि की प्रतिपाल ॥ गरुड़ चड़्हे आए गोपाल ॥१६॥ कहहि त धरणि इकोडी करउ ॥ कहहि त ले करि ऊपरि धरउ ॥१७॥ कहहि त मुई गऊ देउ जीआइ ॥ सभु कोई देखै पतीआइ ॥१८॥ नामा प्रणवै सेल मसेल ॥ गऊ दुहाई बछरा मेलि ॥१९॥ दूधहि दुहि जब मटुकी भरी ॥ ले बादिसाह के आगे धरी ॥२०॥ बादिसाहु महल महि जाइ ॥ अउघट की घट लागी आइ ॥२१॥ काजी मुलां बिनती फुरमाइ ॥ बखसी हिंदू मै तेरी गाइ ॥२२॥ नामा कहै सुनहु बादिसाह ॥ इहु किछु पतीआ मुझै दिखाइ ॥२३॥ इस पतीआ का इहै परवानु ॥ साचि सीलि चालहु सुलितान ॥२४॥ नामदेउ सभ रहिआ समाइ ॥ मिलि हिंदू सभ नामे पहि जाहि ॥२५॥ जउ अब की बार न जीवै गाइ ॥ त नामदेव का पतीआ जाइ ॥२६॥ नामे की कीरति रही संसारि ॥ भगत जनां ले उधरिआ पारि ॥२७॥ सगल कलेस निंदक भइआ खेदु ॥ नामे नाराइन नाही भेदु ॥२८॥१॥१०॥ {पन्ना 1165-1166}

पद्अर्थ: बे = हे! देखउ = मैं देखॅूँ, मैं देखना चाहता हूँ।1।

सुलताने = सुल्तान ने। बाधिआ = बाँध लिया। बीठुला = माया से रहित, प्रभू।1। रहाउ।

बिसमिलि = मरी हुई। नातर = नहीं तो। ठांइ = इसी जगह पर, अभी ही।2।

बादिसाह = हे बादशाह!।3।

अहंकारि = अहंकार में। चमकारि दीनो = प्रेर दिया, उकसाया।5।

की न = क्यों नहीं?।6।

पूंगड़ा = बच्चा। पिंडु पड़ै = अगर शरीर भी नाश हो जाए।7।

गजिंदु = हाथी, बड़ा हाथी। उबरै = बच गया।8।

इनि = इस ने। मलिआ = तोड़ दिया है।9।

सर भरि = तोल बराबर।10।

मालु = रिश्वत का धन। भरउ = इकट्ठी करूँ।11।

पावहु = पैरों में। हाथहु = हाथों से।12।

त्रिभवण धनी = त्रिलोकी का मालिक प्रभू।14।

पाखंतण = पंख। बाज = बाजा। बजाइला = बजाया। आइला = आया।15।

परि = ऊपर।16।

कहहि = अगर तू कहे। इकोडी = टेढ़ी, उल्टी। ले करि = पकड़ के। ऊपरि धरउ = मैं टांग दूँ।17।

पतीआइ = परता के, तसल्ली कर के।18।

सेलम = (अरबी) सलम, बाँधना (रस्सी के साथ)। सेल = (फारसी) सूल, खुर, पिछले पैर।19।

दुहि = दुह के (दूध)।20।

अउघट की घट = मुश्किल घड़ी।21।

फुरमाइ = हुकम कर। बखसी = मुझे बख्श। हिंदू = हे हिन्दू!।22।

पतीआ = तसल्ली।23।

परवान = माप, अंदाजा। साचि = सच में। सीलि = अच्छे स्वभाव में।24।

सभु = हर जगह, घर घर में।25।

रही = कायम हो गई। संसारि = संसार में।27।

खेदु = दुख।28।

अर्थ: (मुहम्मद-बिन-तुग़लक) बादशाह पूछता है- हे नामे! सुन, मैं तेरे राम के काम देखना चाहता हूँ।1।

बादशाह ने मुझे (नामे को) बाँध लिया (और कहने लगा-) मैं तेरा हरी, तेरा बीठल, देखना चाहता हूँ।1। रहाउ।

(मेरी यह) मरी हुई गाय जीवित कर दे, नहींतो तुझे भी यहीं (अभी) मार दूँगा।2।

(मैंने कहा-) बादशाह! ऐसी बात कैसे हो सकती है? कभी कोई मरा हुआ मुड़ के नहीं जीया।3।

(तथा एक बात और भी है) वही कुछ होता है जो परमात्मा करता है, मेरा किया कुछ नहीं हो सकता।4।

बदशाह (यह उक्तर सुन के) अहंकार में आया, उसने (मेरे पर) एक बड़ा हाथी उकसा के चढ़ा दिया।5।

(मेरी) नामे की माँ रोने लगी (और कहने लगी- हे बच्चा!) तू राम छोड़ के खुदा-खुदा क्यों नहीं कहने लग जाता?।6।

(मैंने उक्तर दिया-) ना मैं तेरा पुत्र हूँ, ना तू मेरी माँ है; अगर मेरा शरीर भी नाश हो जाए, तो भी नामा हरी के गुण गाता रहेगा।7।

हाथी अपनी सुंड की चोट करता है, पर नामा बच निकलता है; नामे को परमात्मा का आसरा है।8।

(बादशाह सोचता है-) मुझे (मेरे मज़हब के नेता) काजी और मौलवी सलाम करते हैं, पर इस हिन्दू ने मेरा माण तोड़ दिया है।9।

(हिन्दू लोग मिल के आए, और कहने लगे,) हे बादशाह! हमारी अर्ज सुन, नामदेव के बराबर का तोल के सोना ले लो (और इसे छोड़ दो)।10।

(उसने उक्तर दिया) अगर मैं रिश्वत लूँ तो दोज़क में पड़ता हूँ, (क्योंकि इस तरह तो) मैं मज़हब छोड़ के दौलत इकट्ठी करता हूँ।11।

नामदेव के पैरों में बेड़ियाँ हैं, पर फिर भी वह हाथों से ताल दे दे के परमात्मा के गुण गाता है।12।

अगर गंगा और जमुना उल्टी भी बहनें लग जाएं, तो भी नामा हरी के गुण गाता रहेगा (और दबाव में आ के खुदा खुदा नहीं कहेगा)।13।

(बादशाह ने गाय जिंदा करने के लिए एक पहर की मोहलत दी हुई थी) जब (घड़ी पर) सात घड़ियां गुज़री सुनी, तो (मैंने नामे ने सोचा कि) अभी तक भी त्रिलोकी का मालिक प्रभू नहीं आया।14।

(बस! उसी वक्त) पंखों के फड़कने की आवाज़ आई, विष्णू भगवान गरुड़ पर चढ़ कर आ गया।15।

प्रभू जी गरुड़ पर चढ़ कर आ गए, और उन्होंने अपने भगत की रक्षा कर ली।16।

(गोपाल ने कहा- हे नामदेव!) अगर तू कहे तो मैं धरती टेढ़ी कर दूँ, अगर तू कहे तो इसको पकड़ के उल्टा दूँ, अगर तू कहे तो मरी हुई गाया जीवित कर दूँ, और यहाँ हरेक व्यक्ति तसल्ली से देख ले।17,18।

(गोपाल की इस कृपा पर) मैंने नामे ने (उन लोगों को) विनती की- (गऊ के पास उसका) बच्चा कर दो। (तो उन्होंने) बच्छा छोड़ के गाय का दूध दुह लिया।19।

दूध दुह के जब उन्होंने मटकी भर ली तो वह ले के बादशाह के आगे रख दी।20।

बादशाह महलों में चला गया (और वहाँ उस पर) मुश्किल घड़ी आ गई (भाव, वह सहम गया)। अपने काज़ियों और मौलवियों के ज़रिए उसने विनती (भेज डाली) - हे हिंदू! मुझे हुकम कर (जो हुकम तू देगा मैं करूँगा), मुझे बख्श, मैं तेरी गाय हूँ।21,22।

नामा कहता है- हे बादशाह! सुन, मुझे एक तसल्ली करवा दे, इस इकरार का माप ये होगा कि हे बादशाह! तू (आगे से) सच्चाई पर चलेगा, अच्छे स्वभाव में रहेगा।23,24।

(यह करिश्मा सुन देख के) घर-घर में नामदेव की बातें होने लगीं, (नगर के) सारे हिन्दू मिल के नामदेव के पास आए (और कहने लगे-) अगर अबकी बार गाय ना जिंदा होती तो नामदेव का ऐतबार जाता रहना था।25,26।

पर प्रभू ने अपने भगतों को, अपने सेवकों को चरणों से लगा के पार कर दिया है, नामदेव की शोभा जगत में बनी रही है; (यह शोभा सुन के) निंदकों को बड़ा कलेश और बड़ा दुख हुआ है (क्योंकि वे यह नहीं जानते कि) नामदेव और परमात्मा में कोई दूरी नहीं रह गई।27,28।1।10।

नोट: इसी ही राग के शबद नंबर 6 की आखिरी तुक में शब्द 'भगत जनां' आया है, यहाँ भी बंद नं: 27 में यही शब्द है। दोनों जगहों पर नामदेव जी अपनी आपबीती सुना के आम असूल की बात सुनाते हैं कि प्रभू अपने भक्तों की लाज रखता है।

नोट: बंद नं: 14,15, 16 में नामदेव जी परमात्मा का यह स्वरूप निरोल पुराणों के अनुसार हिन्दुओं वाला बताते हैं, क्योंकि एक मुसलमान बादशाह जान से मारने का डरावा देता है और चाहता है कि नामदेव मुसलमान बन जाए। नामदेव जी की माँ समझाती भी है, पर, वे निडर हैं। वैसे भी नामदेव जी परमात्मा के किसी खास स्वरूप के पुजारी नहीं हैं। इसी ही राग में आखिरी शबद में देखिए, परमात्मा को 'अब्दाली' कह के कहते हैं कि मेरे छैणे तूने ही छिनवाए थे। जहाँ हिन्दू अपनी ऊँची जाति का मान कर के नामदेव को मन्दिर से बाहर निकालते हैं, वहाँ नामदेव जी प्रभू को 'कलंदर, अब्दाली' कह के मुसलमानी पहरावे और मुसलमानी शब्दों में याद करते हैं।

शबद का भाव: सिमरन करने वालों को कोई डर नहीं सता सकता।

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Sri Guru Granth Darpan, by Professor Sahib Singh